Dasrath majhi inspirational story in hindi.
दशरथ मांझी की प्रेरणादायक कहानी :True motivational stories in hindi.
अगर आप के हौसले बुलंद हो तो आप अपने भाग्य के निर्माता खुद हैं. अगर पर्वतों से बड़ा और आसमान से ऊंचा कुछ और सकता है तो वह है हमारा हौसला . हौसला वह चीज है जो हमें मजबूत बनाती है दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हौसला उस बला का नाम है जो हमें मुसीबत और परेशानियों से लड़ने की शक्ति देती हैं.
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संघर्ष की वो कहानी जो आपको सफलता दिलाएगी. |
अगर आपका हौसला बुलंद हो तो आप पर्वतों को काटकर रास्ता बना सकते हैं और अगर आपका हौसला बुलंद ना हो तो आप दो पग भी नहीं चलसकते ,अगर आप के हौसले बुलंद हो तो आप अपने हार को जीत में बदल सकते हैं और अगर आप के हौसले कमजोर हो तो आप जीत को हार में क्या बल्कि जीत के लिए कोशिश भी नहीं कर सकते।
दोस्तों यह motivational story उस इंसान की है जिसने अपने बुलंद हौसले ओर दृढ़ संकल्प के कारण असंभव काम को संभव कर दिखाया। यह कहानी भारत के माउंटेन मैन कहे जाने वाले दशरथ मांझी की है जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत महज एक छेनी और हथौड़ी से पूरे पहाड़ को काटकर एक रास्ता बना दिया। दोस्तों दशरथ मांझी एक ऐसा व्यक्तित्व है जिससे हमारे देश के करोड़ों युवाओं को प्रेरणा मिलती है.
प्रारंभिक जीवन
दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को बिहार के आरा के गहलौर गांव में हुआ था, जो एक अत्यंत पिछड़ा गांव था। गहलोर गांव एक अत्यंत पिछड़ा गांव था और यहां पर संसाधनों की काफी कमी थी, उनके गांव में उन दिनों ना तो बिजली थी और ना तो पानी, इसके अलावा यहां यातायात की भी कोई अच्छी सुविधा नहीं थी।
दशरथ मांझी जिस गांव में रहते थे वहां बिजली, पानी ,डॉक्टरी ,और शिक्षा की सुविधाएं अच्छी ना होने के कारण उन्हें इन सुविधाओं के लिए पास के कस्बे में जाना पड़ता था जहां कुछ जरूरी सेवाएं बड़ी मुश्किल से उपलब्ध रहती थी।
दशरथ मांझी जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे में जाने के लिए एक पूरे पहाड़ को पार करना पड़ता था तथा उस पहाड़ के पूरे चक्कर लगाने के बाद ही दूसरे तरफ पहुंचा जा सकता था. दशरथ मांझी के गांव लोगो की छोटी सी भी जरूरत इस पहाड़ को पार करने के बाद ही पूरी होती थी।
दशरथ मांझी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था तथा उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी खराब रहती थी. इसी खराब आर्थिक स्थिति के कारण माझी ने बहुत कम उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था। बचपन से ही दशरथ मांझी अपने काम के सिलसिले में अपने घर से काफी दूर-दूर तक निकल जाया करते थे।
दोस्तों आपको बता दें कि दशरथ मांझी काफी कम उम्र में ही काम के सिलसिले में बिहार के अपने गहलौर गांव को छोड़कर झारखंड चले गए थे। झारखंड जाने के बाद उन्हें झारखंड के धनबाद जिले के एक कोयला खदान में उन्हें नौकरी मिल गई जहा उन्होंने 10 वर्षों तक कठिन परिश्रम किया।लगभग 10 सालों तक कोयले की खदान में काम करने के बाद वे किसी परिस्थिति वश अपने गांव गहलौर वापस आ गए।
Dashrath manjhi love story
और जीवन बदलने वाली दुर्घटना:
गहलौर आने के बाद उनकी शादी (dashrath manjhi wife) फाल्गुनी देवी से हुई जो उन्हें बहुत प्रेम करती थी।
दशरथ मांझी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अपने घर से दूर खेतों और पहाड़ी इलाकों में मजदूरी का काम करना पड़ता था जब दशरथ मांझी खेतों में काम करने जाते तब रोज उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी उन्हें खाना देने के लिए उनके पास जाती थी।
एक दिन जब दशरथ मांझी पहाड़ी इलाके में अपना काम कर रहे थे और हर दिन की तरह उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी उस दिन भी उन्हें जब दोपहर का खाना देने जा रही थी तब दुर्भाग्यवश अचानक पैर फिशलने के कारण वह एक पहाड़ी दर्रे मैं जा गिरती हैं और तत्काल इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
फाल्गुनी देवी की मौत का सबसे बड़ा कारण वह पहाड़ था जो दशरथ मांझी के गांव और शहर के बीच दीवार बनकर खड़ा था। इसी पहाड़ के कारण फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाने में ज्यादा समय लग गया और उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि गांव से शहर के जाने के लिए पूरे पहाड़ के चक्कर लगाने पड़ते थे।अपनी पत्नी की मृत्यु ने दशरथ मांझी को पूरी तरह झकझोर के रख दिया ओर वह सोच में पड़ गए हैं कि कैसे एक पहाड़ के बाधा बनने के कारण वह अपनी पत्नी को नहीं बचा सके।
Dasrath majhi inspirational story in hindi
फिर लिए असंभव को संभव करने का फैसला :
अपनी पत्नी की मृत्यु से जुड़ी इस दुखद घटना के बाद दशरथ मांझी ने एक फैसला लिया और इसी फैसले के कारण दूनीया भर के लोगों आज उन्हेंमाउंटेन मैन ऑफ इंडिया के नाम से जानते हैं. माझी ने अपने बुलंद इरादों से यह फैसला लिया कि वे उस पहाड़ को ही काट डालेंगे जिसके रास्ता रोकने के कारण उनकी पत्नी की दर्दनाक मौत हो गई थी.
जिसने रोका रास्ता उसे ही धूल में मिला दिया:
इसके बाद अपने बुलंद हौसलों और इरादों का परिचय देते हुए दशरथ मांझी अपनी छोटी सी छेनी और हथौड़ी से उस विशालकाय पहाड़ को तोड़ने में लग गए। जब गांव वालों ने पहली बार उन्हें मात्र एक छेनी और हथौड़ी से पहाड़ को तोड़ते हुए देखा तो लोग उन पर हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे कईयो ने तो उन्हें पागल भी कहना शुरू कर दिया था. लोग कहते हैं कि ये अपने बीवी के मौत के सदमे से पागल हो गया है जो इतनी छोटी सी छेनी और हथौड़ी से विशालकाय पहाड़ को तोड़ने में लगा हैं.इन सबके बावजूद दशरथ मांझी अपने काम में जुटे रहे ।
इसी तरह दिन बीतते चले गए ,कई महीने गुजर,कई मौसम आए और चले गए अब तो साल भी बितने लगे थे क्या गर्मी, क्या बरसात और क्या ठंड इन सब की न परवाह करते हुए दशरथ मांझी सिर्फ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम करते रहें। उनका बस एक ही लक्ष्य था उस पहाड़ को काटकर रास्ता बना देना ताकि जो उनके साथ हुआ वह फिर किसी और गांव सदस्य के साथ ना हो।
अपने दृढ़ संकल्प और बुलंद इरादों का परिचय देते हुए लगातार 22 साल की कठिन परिश्रम और मेहनत के बाद पहाड़ में 360 फुट लंबा, 25 फीट गहरा 30 फीट चौड़ा रास्ता dashrath manjhi road बनाने में कामयाब हुए.
दशरथ मांझी द्वारा (dashrath manjhi road) बनाए गए इस रास्ते के कारण गया के अन्नी से वजीरगंज दूरी मात्र 15 किलोमीटर रह गई जो पहले पहाड़ को चक्कर लगाकर जाने के बाद 80 किलोमीटर की दूरी पड़ती थी वह मात्र 3 किलोमीटर की ही रह गई. दशरथ मांझी के इस फैसले का पहले तो मजाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने जालौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया.
आपका व्यक्तित्व ऐसा हो जो दूसरों को प्रेरणा दे सके:
10 कठिन परिश्रम निष्ठा और प्रेरणा से प्रेरित होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गैहलौर जो उनका गांव था वहां पर उनके नाम पर किलोमीटर लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल का निर्माण करवाया उनके गांव में बिजली पानी की परेशानी को दूर करने का कार्य किया .
इस महान व्यक्ति की प्रेरणा से बॉलीवुड भी अधूरा नहीं रहा सन 2015 में प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक केतन मेहता ने दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित फिल्म (dashrath manjhi movie) मांझी द माउंटेन मैन बनाई थी फिल्म के माध्यम से दशरथ मांझी के आदर्शों को लोगों तक पहुंचा सके
माझी के जीवन से सीख:
दशरथ मांझी के जीवन से हमारे देश के करोड़ों युवाओं को यह सीख लेनी चाहिए कि आपका लक्ष्य चाहे कितना ही बड़ा क्यों ना हो पर अगर आप अपने विश्वास रखते हुए दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करें तो आप एक ना एक दिन अपने लक्ष्य को हासिल करके रहेंगे.जिस प्रकार दशरथ मांझी अपने छोटे से छेनी और हथौड़ी की मदद से एक विशालकाय पहाड़ को चीर कर रास्ता बना सकते हैं तो क्या हम लोग अपनी इस छोटी सी बुद्धि का इस्तेमाल कर अपने बड़े लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते.
दशरथ मांझी जी का जीवन उन लाखों छात्रों के लिए मिसाल है जो आज के इस कठिन दौर में सरकारी नौकरी की चेष्टा करते हैं.जिस प्रकार दशरथ माझी को पहाड़ काटने में 22 साल लग गए फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और बिना निराश वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत की अंत में सफलता प्राप्त की, ठीक उसी प्रकार युवा कभी हार न माने और निराश ना हो हो सकता है आपको भी समय लगे पर आपको भी सफलता जरूर मिलेगी और वह एक शानदार पल होगा।