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Real life Inspirational Stories In Hindi - असल जिंदगियों की कुछ ऐसी प्रेरणात्मक कहानियां जो आपका जीवन बदल सकती हैं

 

   Real life Inspirational Stories In Hindi

 True Motivational Stories In Hindi . 



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दोस्तों हमारी  दुनिया में ऐसे बहुत सारे  लोग हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और संघर्षो से वो मुकाम हासिल किए हैं जिनका सपना एक आम मनुष्य अपनी  जिंदगी में देखता हैं। दोस्तों आज मैं आपको असल जिंदगियों की कुछ ऐसी प्रेरणात्मक कहानियो (Real life Inspirational Stories In Hindi) को बतायूंगा जो आपको  मेहनत करने और कभी हार न मानने सीख देंगी।  दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हम कुछ ऐसे लोगो की जिंदगी के बारे में जानेगे जिनका जीवन दुनिया के हर इंसान को प्रेरणा देने के साथ साथ उनका जीवन भी बदल सकती हैं #(Real life Inspirational Stories In Hindi).  

# Real life Inspirational Stories In Hindi-1

लियोनेल मेसी की प्रेरणदायक कहानी

शारीरिक कमी को हराकर कैसे बना दुनिया का सबसे प्रसिद्ध फुटबॉलर 


दोस्तो लियोनेल मेसी की कहानी भी एक ऐसे इंसान की कहानी है जो अपने  जीवन की सारी बाधाओं को  पार करता हुआ दुनिया का सबसे महान फुटबॉल  खिलाड़ी बनता है.दोस्तों यह   motivational story  लियोनेल मेसी के जीवन का है जिस जीवन में उन्होंने अपनी खराब वित्तीय पृष्ठभूमि, शारीरिक अक्षमताओं और संसाधनों की कमी पर विजय प्राप्त कर अपने आप को दुनिया का सबसे महान फुटबाल खिलाड़ी बनाया.

लियोनेल मेसी का जन्म  24 June 1987 को अर्जेंटीना में हुआ था ,मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे मेसी का आरंभिक जीवन प्राय अभाव में ही बीता उनके पिता जॉर्ज मेसी एक स्टील फैक्ट्री में मैनेजर थे और उनकी माता भी एक कामकाजी महिला थी. दोस्तों मेसी के माता-पिता एक फुटबॉल प्रेमी थे जिसके कारण उनके बच्चो को भी काफी काम उम्र से ही फुटबॉल के प्रति लगाव हो गया था.मेस्सी जब मात्र 10 साल के थे तब उनके उनके जीवन में  संघर्षो की शुरुआत बड़े ही  नाटकीय ढंग से हुयी। 

 लियोनेल मेसी जब 10 वर्ष के थे तो उन्हें पता चला कि उनके शरीर में विकास हार्मोन की बड़ी भारी कमी है जिसके कारण उनके शरीर का विकास रुक गया है.दोस्तों आपको बता दें कि 10 वर्ष की उम्र में मेस्सी अपने हम उम्र के बच्चों की तुलना में और यहां तक की अपने से  छोटी उम्र के बच्चों की तुलना में भी काफी छोटे और नाजुक थे. अपने बच्चे में इस असमानता को देखकर जब मेस्सी के परिवार वालों ने डॉक्टरी सहायता ली तो यह पाया कि मेस्सी के शरीर में ग्रोथ हार्मोन की बड़ी भारी कमी है जिसके कारण उनका विकास रुक गया है और इस विकास की प्रक्रिया को पुनः शुरू करने के लिए हर महीने ग्रोथ हार्मोन इंजेक्शन देने की आवश्यकता हैं .


दोस्तों आपको बता दे की इस इंजेक्शन  को देने का खर्च 900 से 1000  डॉलर  प्रतिमाह था. दोस्तों मेसी के माता-पिता की आर्थिक स्थिति  इतनी अच्छी नहीं थी कि प्रत्येक महीने इतनी रकम सिर्फ इलाज के लिए खर्च कर सकें. इस घटना के बाद मानो ऐसा लग रहा था कि मेस्सी का करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा पर यह तो छोटे से मेस्सी के जीवन के संघर्षों की शुरुआत भर ही थी.

मेसी एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे उनकी  इस प्रतिभा को देखकर कई सारे फुटबॉल क्लबों ने  उन्हें अपने क्लब में शामिल करने की दिलचस्पी दिखाई थी पर यह  बीमारी मेस्सी की सफलता में पहली बार तब रोड़ा बनी  जब अर्जेंटीना के रिवर प्लेट एफसी नामक क्लब ने मेसी की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अपने  टीम में चुनने का निर्णय कर लिया था जब उन्हें मेसी की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पता चला कि इस 11 साल के लड़के की वृद्धि रुक गई है और इसके इलाज के लिए प्रतिमाह तकरीबन $1000 की आवश्यकता है तो उन्होंने अपना निर्णय बदल दिया और उन्हें अपनी टीम में चुनने से मना कर दिया और यह  हवाला  दिया कि वे किसी खिलाड़ी के इलाज के लिए इतने पैसे खर्चे नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके पास फंड की कमी है.

मेसी एक  प्रतिभावान खिलाड़ी थे पर इस समय एक शारीरिक कमी ने उनसे उनका सब कुछ छीन लिया था, जिस खिलाड़ी को अपनी क्लब में शामिल करने के लिए बड़े प्रतिष्ठित फुटबॉल क्लब आपस में होड़ लगाते थे आज उस खिलाड़ी को एक शारीरिक कमी के कारण कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहता था.



दोस्तों यह घटना है किसी को भी हतोत्साहित कर सकती हैं फिर भी मेस्सी ने  नहीं कभी भी हार नहीं मानी ओर नही  इन चुनौतियों के बीच उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया और ना ही अपने आप को कमजोर होने दिया.दोस्तों यह घटना है किसी को भी हतोत्साहित कर सकती हैं फिर भी मेस्सी ने  नहीं कभी भी हार नहीं मानी ओर नही  इन चुनौतियों के बीच उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया और ना ही अपने आप को कमजोर होने दिया.

इन सब चुनौतियों के बावजूद मेसी ने खुद को टूटने से बचाए रखा और अपनी प्रतिभा पर विश्वास रखते हुए खुद को आशावादी बनाए रखा, पर कहते हैं ना कि  जुनूनी और प्रतिभाशाली लोगों के दुख ज्यादा दिन नहीं रहते. सारी कमियों को अनदेखा कर जिस तरह  मेस्सी अपनी प्रतिभा और मेहनत को बढ़ाते रहें वह आखिरकार रंग लाई. 


  लियोनेल मेसी के जीवन  ने उस वक्त एक बड़ी  मोड ली जब 13 वर्ष की उम्र में एफसी बर्सिलोना के निर्देशक कार्लेक्स रेक्चस को मेसी की प्रतिभा के बारे में पता चला. मेसी की असाधारण प्रतिभा और खेल को देखकर करलेक्स रेक्चस  ने मेसी को अपने क्लब में शामिल किया साथ ही साथ उन्होंने मेसी का विकास हार्मोन को बढ़ाने वाले इलाज के खर्च को भी मंजूरी दे दी .दृढ़ संकल्प और फुटबॉल के प्रति अपने जुनून के कारण महज 16 साल की उम्र में मेस्सी पहली बार बार्सेलोना की तरफ से आधिकारिक तौर पर मैदान में उतरे और इस मैच में बार्सिलोना की जीत हुई।

मेसी ने लगातार कई फुटबॉल रिकॉर्ड तोड़े हैं जैसे दो विश्व कप, दो यूएफा  सुपर कप, 3 चैंपियंस लीग,6 ला लीगा लीग. 2011 के फोर्ब्स  के मुताबिक मेसी की संपत्ति (lionel messi net worth) 110 मिलियन डॉलर से अधिक की है फोर्ब्स के नए आंकड़े के अनुसार 2019 में मेस्सी सैलरी के मामले में दुनिया का सबसे ज्यादा कमाई करने वाले एथलीट  रह चुके हैं.लियोनेल मेसी के जीवन से हमें सीख मिलती है कि कैसे  मनुष्य अपने दृढ़ संकल्प और कौशल के आधार पर अपने जीवन की बाधाओं को पार करता हुआ एक  सफल इंसान बनता है मेसी के व्यक्तित्व से हमे यह सिख लेनी चाहिये कि हमें अपनी कमियों के बजाय अपनी खूबियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और जब आपके जीवन में कभी बुरा वक्त आए तो उसे घबराने की बजाय उसके  समाधान की चिंता करनी चाहिए. 


  # Real life Inspirational Stories In Hindi-2

दशरथ मांझी की प्रेरणदायक कहानी 

 पूरे पहाड़ को काटकर एक रास्ता बना देने वाले बुलंद हौशले कहानी 


दोस्तों यह  motivational story उस इंसान की है जिसने अपने बुलंद हौसले ओर  दृढ़ संकल्प के कारण असंभव काम को संभव कर दिखाया। यह कहानी भारत के माउंटेन मैन कहे जाने वाले दशरथ मांझी की है जिन्होंने अपने बुलंद  हौसलों की बदौलत महज एक छेनी और हथौड़ी से  पूरे पहाड़ को काटकर एक रास्ता बना दिया। 

दोस्तों दशरथ मांझी एक ऐसा व्यक्तित्व है जिससे हमारे देश के  करोड़ों युवाओं को प्रेरणा मिलती है.दशरथ मांझी जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे में जाने के लिए एक पूरे पहाड़ को पार करना पड़ता था तथा उस पहाड़ के पूरे चक्कर लगाने के बाद ही दूसरे तरफ पहुंचा जा सकता था. 

दशरथ मांझी के गांव  लोगो की  छोटी सी भी जरूरत इस पहाड़ को पार करने के बाद ही पूरी होती थी।एक दिन जब दशरथ मांझी पहाड़ी इलाके में अपना काम कर रहे थे और हर दिन की तरह उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी  उस दिन भी उन्हें जब  दोपहर का खाना देने जा रही थी तब दुर्भाग्यवश अचानक पैर फिशलने  के कारण वह एक पहाड़ी दर्रे मैं जा गिरती हैं और तत्काल इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो  जाती है।



फाल्गुनी देवी की मौत का सबसे बड़ा कारण वह पहाड़ था जो दशरथ मांझी के  गांव और शहर के  बीच दीवार बनकर खड़ा था। इसी पहाड़ के कारण फाल्गुनी  देवी को अस्पताल ले जाने में ज्यादा समय लग गया और उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि गांव से शहर के जाने के लिए पूरे पहाड़ के  चक्कर लगाने पड़ते थे।अपनी पत्नी की मृत्यु ने दशरथ मांझी  को पूरी तरह झकझोर के रख दिया ओर वह सोच में पड़ गए हैं कि कैसे एक पहाड़ के बाधा बनने के कारण वह अपनी पत्नी को नहीं बचा सके।

अपनी पत्नी की मृत्यु से जुड़ी  इस दुखद घटना के बाद दशरथ मांझी ने एक फैसला लिया और इसी फैसले के कारण दूनीया भर  के लोगों  आज उन्हेंमाउंटेन मैन  ऑफ इंडिया के नाम से जानते हैं. माझी ने अपने बुलंद इरादों से यह फैसला लिया  कि  वे  उस पहाड़ को ही काट डालेंगे  जिसके  रास्ता रोकने  के कारण उनकी पत्नी की दर्दनाक मौत हो गई थी.

इसके बाद अपने बुलंद हौसलों और इरादों का परिचय देते हुए दशरथ मांझी अपनी छोटी सी छेनी और हथौड़ी से उस विशालकाय पहाड़ को तोड़ने में  लग गए।  जब गांव वालों ने पहली बार उन्हें मात्र एक छेनी और हथौड़ी से पहाड़ को तोड़ते हुए देखा तो लोग उन पर हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे कईयो ने तो उन्हें  पागल भी कहना शुरू कर दिया था. लोग कहते हैं कि ये अपने बीवी के मौत के सदमे से पागल हो गया है जो इतनी छोटी सी छेनी और हथौड़ी से विशालकाय पहाड़ को तोड़ने में लगा हैं.इन सबके बावजूद दशरथ मांझी अपने काम में जुटे रहे ।


इसी तरह दिन बीतते चले गए ,कई महीने गुजर,कई  मौसम आए और चले गए अब तो साल भी बितने लगे थे क्या गर्मी, क्या बरसात और क्या ठंड इन सब की न परवाह करते हुए दशरथ मांझी  सिर्फ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम करते रहें। उनका  बस एक ही लक्ष्य था उस पहाड़ को काटकर रास्ता बना देना ताकि जो उनके साथ हुआ वह फिर किसी और गांव सदस्य के साथ ना हो।

अपने दृढ़ संकल्प  और बुलंद इरादों  का परिचय देते हुए लगातार 22 साल की कठिन परिश्रम और मेहनत के बाद पहाड़ में 360 फुट लंबा, 25 फीट गहरा 30 फीट चौड़ा रास्ता dashrath manjhi road बनाने में कामयाब हुए.

दशरथ मांझी द्वारा (dashrath manjhi road) बनाए गए इस रास्ते के कारण गया के अन्नी से वजीरगंज दूरी मात्र 15 किलोमीटर रह गई जो पहले पहाड़ को चक्कर लगाकर जाने के बाद 80 किलोमीटर की दूरी पड़ती थी वह मात्र 3 किलोमीटर की ही रह गई. दशरथ मांझी के इस फैसले  का पहले तो मजाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने जालौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया.

दशरथ मांझी जी का जीवन उन लाखों छात्रों के लिए मिसाल  है  जो आज के इस कठिन दौर में सरकारी नौकरी की चेष्टा करते हैं.जिस प्रकार दशरथ माझी  को  पहाड़ काटने में 22 साल लग गए फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और बिना निराश  वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत की अंत में सफलता प्राप्त की, ठीक उसी प्रकार युवा कभी हार न माने और निराश ना हो हो सकता है  आपको भी समय लगे  पर आपको भी सफलता जरूर मिलेगी और वह एक शानदार पल होगा। 


  # Real life Inspirational Stories In Hindi-3

सनी हिंदुस्तानी की प्रेरणदायक कहानी

 कैसे जूते पॉलिश करने वाला बना देश का इंडियन आइडल 


दोस्तों प्रतिभा किसी की मोहलत का मोहताज नहीं होती जिस सूर्य ज्यादा देर तक नहीं छुप सकता , ठीक उसी तरह प्रतिभावान व्यक्ति की प्रतिभा भी ज्यादा देर तक  नहीं छुप सकती दोस्तों इस कहावत को सच कर दिखाया है इंडियन आइडल सीजन इलेवन के विजेता सनी हिंदुस्तानी  ने.



दोस्तों सनी की कहानी किसी प्रेरणा देने वाली कहानी से कम नहीं है दोस्तों यह कहानी सनी हिंदुस्तानी के संघर्ष की कहानी है जो आपको ब ताएगी की कैसे एक गरीब जूते साफ करने वाला लड़का भटिंडा के एक छोटे से मोहल्ले से निकलकर माया नगरी कहे जाने वाले मुंबई में  संघर्ष कर अपने सपने को पूरा करता है.सनी बेहद गरीब परिवार से है और पिता की मौत के बात तो उनके परिवार के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, घर की माली हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि दो वक्त की रोटी के लिए भी  संघर्ष करना पड़ता था. 

इसी गरीबी के कारण  सनी केवल छठी  कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाये। जिंदगी के शुरुआती दिनों में सनी ने जूते पॉलिश करने के अलावा बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर अपने परिवार का गुजारा  चलाते, दोस्तों आपको बता दें कि सिर्फ सनी ही नहीं बल्कि उनकी मां भी अपने परिवार को चलाने के लिए संघर्ष करती थी, उनकी मां सड़कों पर गुब्बारा बेचने का काम करती थी इसलिए वह सुबह सुबह ही गुब्बारों का ठेला लेकर घर से निकल जाती शाम को घर आती थी।

सनी अपने परिवार की गरीबी का जिक्र करते हुए बताते हैं कि उनकी मां उनका पालन पोषण करने के लिए दूसरों के घरों से चावल मांगने जाया करती थी ताकि वह अपने बच्चे को भूखा ना सुला सके।सनी अपने इन संघर्ष के दिनों को जब भी याद करते हैं तो उनकी आंखों से आंसू छलक जाते हैं।अपनी मां और परिवार कि इतनी दयनीय हालत को देखकर सनी ने यह ठान लिया था कि अब वे अपने परिवार की हालत को बदल कर ही रहेंगे.

सनी  हिंदुस्तानी अपने संघर्ष के दिनों में अपने दोस्तों के साथ बस स्टैंड और रेलवे प्लेटफार्म पर जूता पॉलिश करते थे और  और साथ में मनोरंजन के लिए गाना भी गाते थे और जब उनके  दोस्तों ने पहली बार उनका गाना सुना तो वे हैरान रह गए क्योकि  सनी की  आवाज का जादू बिल्कुल नुसरत फतेह अली खान की तरह ही था. 

सनी के दोस्तों ने ही सनी की प्रतिभा को सबसे पहले पहचाना था और उन्हें इंडियन आईडल में जाने की प्रेरणा दी थी .जब सनी ने ऑडिशन मे अपना पहला गाना गाया तो ऐसा लगा कि मानो खुद नुसरत फतेह अली खान पुनर्जन्म लेकर गाना गा रहे हो,  उनकी इस आवाज ने पहले ही बार में सारे जजेस और पूरे देशवासियों का दिल जीत लिया . 

सनी हिंदुस्तानी की आवाज ने  लोगों का दिल जीता टी जीत ही लिया  था  पर जब पूरे देश  के लोगों को उनके संघर्ष के बारे में पता चला  तब पूरा देश  भावुक हो उठा.अपनी प्रतिभा और आवाज के दम पर सनी हिंदुस्तानी ने देशवासियों का दिल जीत लिया, सनी हिंदुस्तानी को इंडियन आईडल के फाइनल में देशवासियों  ने सबसे अधिक वोट दिए और इंडियन आईडल सीजन इलेवन का विजेता बनाया.

 इंडियन आइडल के विजेता बनने के बाद सनी को 2500000 रुपए, एक गाड़ी ,और इसके  t - series साथ एक गाना गाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला जो उनकी किस्मत बदलने के लिए काफी था.देश में आज भी ऐसे लाखों करोड़ों  लोग हैं जो अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं पर वे आपने  बेटे बेटियों से यह आकांछा रखते हैं  की एक न एक दिन जरूर उनके बेटे या  बेटियां उनके दुख और गरीबी को दूर  करेंगे. 

दोस्तों अगर आप भी इन श्रेणियों में आते हैं और अगर आप पर भी अपने परिवार  की गरीबी को दूर करने तथा अपने सपनों तो पूरा करने की जिम्मेदारी है आप सनी हिंदुस्तानी के जीवन से प्रेरणा  लेकर अपने परिवार  और अपना भाग्य बदल सकते हैं। 


  # Real life Inspirational Stories In Hindi-4

साफिन हसन

कैसे माता, पिता संग  सड़क के किनारे उबले अंडे और चाय बेचने वाला सबसे काम उम्र आईपीएस अधिकारी. 


दोस्तों अगर आपके सपने बड़े हो तो आप का संघर्ष बड़ा होगा और आप का संघर्ष बड़ा होगा तो आपकी मेहनत बड़ी होगी और अगर आपकी मेहनत बड़ी होगी तो यकीन मानिए आपकी जीत भी बड़ी होगी। दोस्तों इस बात को सच कर दिखाया देश के सबसे कम उम्र के आईपीएस ऑफिसर बनने वाले  साफिन हसन ने, 


दोस्तों यह एक प्रेरणास्रोत कहानी है  गुजरात के सूरत में रहने वाले साफिन हसन की है.साफिन हसन एक मध्यवर्गीय परिवार से थे साफिन अपने माता पिता के साथ गुजरात के सूरत में रहते थे. 

शुरुआती दौर में उनके माता-पिता सूरत के एक डायमंड यूनिट में काम करके अपने परिवार का गुजारा करतेथे परंतु कुछ ही दिन बाद  किसी कारणवश उनकी  माता- पिता की नौकरी चली गई, नौकरी चले जाने के बाद उनके परिवार पर तो  मानो दुखों का पहाड़  ही टूट पड़ा,  नौकरी चले जाने के बाद उनकी परिवार की  आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई, परिवार की स्थिति को सुधार करने के लिए घर जाकर  electrician काम करने लगे  और उनकी मां ने घरों और शादियों के समारोह मैं जाकर रोटियां बनाने का काम  करने लगी थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि  कुछ पैसा  अतिरिक्त कमाने के लिए साफिन हसन के पिता और उनकी माता  जाड़े के दिनों में सड़क के किनारे उबले अंडे और चाय बेचा करते थे अपने परिवार की पालन पोषण कर सके और हसीन की पढ़ाई में कोई दिक्कत  नहीं  हो  साहिल अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि मैं अपनी मां को सर्दियों में कभी पसीने से भीगा हुआ देखता था मेरी मां  3:00 बजे सुबह उठकर  15 से 200 तक रोज रोटियां बनाती थी और इतनी मेहनत के बाद  मात्र कुछ हजार रुपए ही कमा पाती थी.

साफिन हसन  ने अपने परिवार को हमेशा पैसों की तंगी से जूझता हुआ देखा है.  अपने परिवार को इन परिस्थितियों में देखकर  ही साफिन हसन ने जीवनमें कुछ करने की ठान ली अब वे  समझ गए थे कि अगर कोई उनके परिवार के दयनिता को  बदल सकता है  तो वह खुद है, इस दिन से उन्होंने ठान ली कि अब वे अपने  सपनों को पूरा करके  ही रहेंगे.

सफिन हसन ने अपने एक दिए गए इंटरव्यू में यह भी बताया कि  उन्हें यूपीएससी में आने की प्रेरणा कहां से मिली है वे कहते थे कि जब स्कूल में पढ़ते थे तब एक बार उनके जिले के जिलाधिकारी ने उनके गांव का दौरा किया जब जिला अधिकारियों  उनके गांव में पहुंचे तो गांव के लोगों ने उनका बहुत सम्मान किया जिला अधिकारी के प्रति  गांव वालों का सम्मान और इज्जत देख कर सफीन काफी हैरान थे.

जब उन्होंने एक व्यक्ति से पूछा कि यह कौन है  जिसके साथ इतने अधिकारी और  सुरक्षा गार्ड की  गाड़ियां चल रही हैं तब उन्हें किसी ने बताया कि यह हमारे जिला के जिला अधिकारी हैं और इनका रुतबा किसी राजा से कम नहीं है इसलिए इन्हें इतना सम्मान दिया जा रहा है. 

डीएम के रुतबे  और काम से  प्रभावित होकर ही साफिन ने भविष्य में डीएम बनने  का सपना अपने मन में पाल  लिया और यह निर्णय कर लिया  कि वे डीएम  बन कर ही रहेंगे इसके बाद साफिन हसन ने अपने मजबूत इरादे को लेकर दिल्ली आ गए.  दिल्ली आने के बाद भी संघर्ष ने उनका पीछा नहीं छोड़ा   अब उन पर यहां रहने और खाने और कोचिंग की फीस  का बोझ था। साफिन हसन के इस संघर्ष को  देखकर एक गुजराती परिवार ने 2 साल उनका कोचीन और खर्च उठाया था।

 साफिन हसन तो प्रतिभाशाली छात्र थे  ही परंतु प्रतिभाशाली होने के साथ-साथ अपने लक्ष्य को पाने का जज्बा कूट-कूट कर भरा था जब वे अपनी  यूपीएससी की परीक्षा  का पहला अटेम्ट  देने जा रहे थे तब उनका रास्ते में एक सड़क  हादसा हो गया  जिसके कारण  उन्हें काफी चोट लगी और साथ ही शरीर  लहूलुहान हो गया  के बावजूद उन्होंने अपने को कमजोर नहीं होने दिया  उन्होंने तुरंत पास की क्लीनिक में फर्स्ट एड लिया और उसी लहूलुहान अवस्था में  परीक्षा  केंद्र में जा पहुंचे.

अपने  मेहनत मजबूत इरादे और परिवार के संघर्ष को अपनी ताकत बना कर 2017 में साफिन हसन देश की सबसे कम उम्र के आईपीएस अधिकारी बन गए अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम के  दम पर  देश की सबसे  कठिन परीक्षा कहे जाने वाली  यूपीएससी परीक्षा (safin hasan upsc rank) परीक्षा में 570 वी रैंक हासिल की और सबसे कम उम्र की भारतीय  पुलिस सेवा की  अधिकारी बन गए है. 

सफिन हसन के संघर्ष और सफलता की कहानी देश के उन लाखों युवाओं को प्रेरणा   देती है जो हर साल यूपीएससी और अन्य प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेते हैं पर थोड़ी सी कठिनाई में अपना हौसला खो देते हैं और विपरीत हालातों से हार मानकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं. सफिन हसन की कहानी हमें बताती है कि कैसे कोई मनुष्य कड़ी मेहनत और अपने लक्ष्य के प्रति  एक निष्ठा  रख के कठिन से कठिन लक्ष्य को भी हासिल कर सकता है.


  # Real life Inspirational Stories In Hindi-5

धर्मपाल गुलाटी की प्रेरणदायक कहानी

कैसे तांगा चलाने वाला बना मशालों दुनिया  बादशाह 


दोस्तों आप सब ने टीवी पर एमडीएस मसालों का विज्ञापन तो देखा ही होगा इस विज्ञापन में आपको हमेशा एक बुजुर्ग व्यक्ति दिखते हैं ऊर्जा के साथ मसालों का विज्ञापन करते हैं, इस बुजुर्ग व्यक्ति को देखकर आप सब भी नहीं सकते कि बुजुर्ग वह महान का प्रधान  व्यक्ति है  जिनकी जिंदगी हजारों उद्यमियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है दोस्तों  यह बुजुर्ग व्यक्ति ही  एमटीएच  कंपनी के मालिक धर्मपाल गुलाटी  है जिन्हें भारत में मसालों का बादशाह कहा जाता है. 

मसालों के राजा कहे जाने वाले महाराथ धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के  सियालकोट में एक  सामान्य परिवार में हुआ था उनके पिता महाराथ  चुन्नीलाल एक सामाजिक संगठन में काम करते थे इसी ऑर्गनाइजेशन में  चुन्नीलाल  जी ने अपने मसालों का एक  छोटा  कारोबार खोला था जिसका नाम  mahashian dihahi pvt.ltd  था.

धर्मपाल गुलाटी बचपन से ही काफी चंचल प्रवृत्ति के थे  और उनका पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था हर माता-पिता के  तरह चुन्नी लाल गुलाटी वे चाहते थे कि  उनका बेटा पढ़े लिखे और बड़ा आदमी बने पर जब वे अपने बेटे को देखे तो उन्हें काफी निराशा होती. ध

र्मपाल गुलाटी ने जैसे तैसे करके चौथी कक्षा पास तो कर ले  तुरंत जब उन्होंने पांचवी क्लास की परीक्षा दी तो फेल हो गए  पढ़ाई लिखाई में उत्साह नहीं होने के कारण और पांचवी में फेल हो जाने के कारण धर्मपाल गुलाटी ने पढ़ाई को छोड़ने का निश्चय कर लिया अपने बेटे के इस तरह पढ़ाई छोड़ने की बात से उनके पिता को काफी निराशा हो गई थी .

15 साल की उम्र तक आते-आते धर्मगुलाटी जी सैकड़ों  काम किए पर किसी भी काम में  ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए  अपने बेटे  के इस चंचल मन  को देखकर चुन्नी लाल गुलाटी ने यह फैसला लिया  कि वे अपने  बेटे से ही अपने दुकान मिर्च मसाले वाले में काम करआएंगे और व्यवसाय की गुड  सिखाएंगे. 

.सन 1947 में भारत   के लोगों को आजादी मिली  आजादी के साथ-साथ  वह घाव भी मिले  जिसका दर्द आज भी लोग भाग रहे हैं  1947 में आजादी मिलने के बाद देश के विभाजन को  लेकर पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे इस दंगे में 1000000 लोगों की मौत हुई और लाखों को अपना अपना घर बार छोड़कर पलायन करना पड़ा  इस भयानक नरसंहार से धर्मपाल  गुलाटी का परिवार भी अछूता नहीं रहा  जन्म स्थान  सियालकोट तक पहुंच गई  जहां हजारों  हिंदुओं को जान से मार दिया गया यह दुकान और संपत्ति जला दी गई इन सब से बचने के लिए  पलायन एकमात्र रास्ता  था.

इसलिए घर में  धर्मपाल गुलाटी जी भी  सियालकोट छोड़कर भारत  के लिए निकल गए. भारत पहुंचने के बाद उन्होंने कुछ दिन अमृतसर के रिफ्यूजी कैंप में  बिताएं   फिर वहां से वह देश की राजधानी दिल्ली में अपने एक  रिश्तेदार के घर आ गए.देश के विभाजन के बाद उनका घर, दुकान, व्यवसाय  सब, पाकिस्तान के हिस्से में चला गया  और सब बर्बाद हो गया,.धर्मपाल गुलाटी जब पाकिस्तान  हिंदुस्तान आए थे तब उनके पास कुछ पैसे थे इसी पैसों से  अतः  उन्होंने एक तांगा(घोड़ा-गाड़ी)  खरीदी और तंग चलाने लगे, धर्मपाल गुलाटी ने कुछ दिनों तक तांगा चलाया फिर उन पर उनकी चंचल मन की प्रवृत्ति होने लगी, क्योंकि तांगा चलाकर इतने पैसे नहीं मिल पा रहे थे कि अपने परिवार का  खर्च चला सके  अतः  मैं  उन्होंने तांगा चलाने  का काम छोड़ दिया।

तांगा चलाने छोड़ने  यह बात उन्होंने अपने  पुराने व्यवसाय में  शुरुआत करने का निर्णय लिया, परंतु वह इतना आसान नहीं  होने वाला था क्योंकि अब  वे सियालकोट में नहीं  थे बल्कि दिल्ली में थे जहां उनके पास कुछ नहीं था  सियालकोट में उनके पिता की अपने दुकान थी वे क्षेत्र के सबसे अच्छे मसाला  के व्यापारी थे और वह  सारे संसाधन  मौजूद थे, उनकी मसालों की दुकान  अपने क्षेत्र मैं नाम और goodwill हासिल कर चुकी थी  और एक अच्छा कस्टमरbare  भी था,  परंतु दिल्ली में  यहां उन्हें कोई जानता  तक नहीं था धर्मपाल गुलाटी को अब फिर से जीरो से शुरुआत करनी थी,  परंतु धर्मपाल गुलाटी इन सब से घबराएं नहीं क्योंकि उन्हें मसाले  के व्यवसाय में काफी अनुभव था वे खुद अपने पिता के साथ मसाला पीसने थे, अपने पिता  द्वारा किए गए कार्यों और सिखाए गए व्यवसाय  गुरु से प्रेरित होकर  उन्होंने फिर से अपनी  पुश्तैनी व्यवसाय शुरू किया  और मसालों के बादशाह बने.अपने मेहनत संघर्ष और मजबूत इरादों से धर्मपाल गुलाटी ने वह कर  दिखाया जो आज  देश के युवा व्यवसाययो और entrepreneur के लिए प्रेरणा बना हुआ है पिता द्वारा शॉप पर गए कारोबार  का  न सिर्फ  बढ़ाया बल्कि उसे एक ब्रांड बनाया वह ब्रांड जिसका इस्तेमाल  तकरीबन भारत के हर घर में होता है. बहुत कम लोग ही महाराज जी की सफलता के पीछे के कठिन परिश्रम को जानते हैं.


# Real life Inspirational Stories In Hindi-6

Manny Pacquiao motivational story in hindi.

मेनी पैकिओ की प्रेरणात्मक कहानी


यह कहानी फिलीपींस के महान बॉक्सर मेनी पैकिओ (Manny Pacquiao Biography in Hindi)कि है जो कभी बचपन में अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए सड़कों पर घूम घूम कर डोनट्स बेचने का काम करते थेऔर दुनिया के सबसे महान बक्सर में से एक होने के साथ दुनिया के सबसे अमीर बॉक्सर में से एक हैं.

मेनी पैकिओ  एक ऐसा व्यक्तित्व है जो हर इंसान को प्रेरणा देता है कि आप चाहे कितनी भी खराब स्थिति में क्यों ना हो , आपकी जिंदगी में चाहे कितना  भी संघर्ष क्यों न हो आप उसे बदल सकते हैं और यकीन मानिये सिर्फ आप ही उसे बदल सकते है.

मेनी पैकिओ  का जन्म 17 दिसंबर 1978 को की किवाबे , फिलीपींस में हुआ था  और  इनके पिता और माता रोसलीओ पैकिओ और डीओनेसिअ पैकिओ अत्यंत  निर्धन और गरीब व्यक्ति थे ,जो बड़ी कठिनाई से अपने छह बच्चों का पालन पोषण कर पाते थे


दोस्तों मेनी पैकिओ अपने माता-पिता और छह भाई-बहनों के साथ घने जंगलों और नारियल के पेड़ों के बीच बनी एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे.  दोस्तों मेनी पैकिओ  का बचपन इन्हीं घने जंगलों और नारियल के पेड़ों के बीच बीता था.  मेनी पैकिओ  और उनका परिवार जिस इलाके में रहते थेवह इलाका स्थानीय जनमानस से काफी दूर था जिसके कारण उन्हें संसाधनों की कमियों से काफी जूझना पड़ता था.

दोस्तों  मेनी पैकिओ की परिवार की आर्थिक स्थिति  इतनी खराब थी कि  उनके पास पैसे  नहीं होते थे उन्हें अपने परिवार के साथ जंगलों में मिलने वाले फलों और कंदमूल को खाकर अपना पेट भरना पड़ता था.

दोस्ती मेनी पैकिओ के पिता अपने परिवार को चलाने के लिए जंगल में  नारियल के पेड़ों से नारियल को तोड़कर उसे बेचने का काम करते थे  लेकिन उनका यह काम भी उन्हें इतने पैसे नहीं दिला सकता था कि   वह पेट भर के अच्छा खाना खा सके. मेनी पैकिओ जब सिर्फ 12  साल के थे उनके पिता ने उनकी मां को तलाक दे दिया और उन्हें छोड़ किसी और महिला के साथ रहने लगे.अपनी पत्नी और बच्चे को छोड़ने के पीछे का कारण व आर्थिक तंगी  और गरीबी ही थी क्योंकि मेनी पैकिओ  के पिता अपनी पत्नी और 6 बच्चों की जिम्मेदारियों को उठा नहीं पा रहे थे.

अपने पिता द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद मेनी पैकिओ की मां और उनके बच्चों  पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा क्योंकि उनके  पति ही उनके घर की आय के साधन थे जो थोड़े ही सही पर  कुछ तो पैसे  कमाते थे जिससे कि उनके घर का गुजारा चलता था. अब पहले से ही गरीबी से जूझ रहे हैं मैंने और उनके परिवार पर अपनी जिंदगी को बचाए रखने का संघर्ष शुरू हो गया. इसके बाद 12 वर्ष की उम्र में में मेनी ने सड़कों पर घूम घूम कर ब्रेड और डोनट्स बेचने का काम शुरू कर दिया ताकि वह कुछ पैसे कमा सकें और अपने परिवार  का गुजारा कर सके.  मेनी पैकिओ   अपने ही घर में बनी  ब्रेड और डोनट्स को जनरल सैंटोस  सिटी की सड़कों पर बेचते थे. इसके  लिए मेनी पैकिओ  सुबह जल्दी घर से निकल जाते और देर रात तक  सामान बेचते थे पर इस काम के बाद  भी वे इतने पैसे नहीं कमा पाते  थे कि उनके बड़े से परिवार का पालन पोषण हो सके.


दोस्तों जैसा कि हम जानते हैं कि मैंने पैकिंग का जन्म फिलिपिंस में हुआ था और फिलीपींस में बॉक्सिंग का खेल काफी प्रसिद्ध है, बचपन से ही गरीबी और आर्थिक तंगी  का सामना करने वाले मेनी पैकिओ  को बचपन से ही बॉक्सिंग में काफी रूचि थी, मेनी पैकिओ  कि इस रुचि को बढ़ावा  तब मिला जब उन्हें जनरल सैंटोस सिटी के कस्बों में होने वाले  स्ट्रीट फाइट के बारे में  पता चला. इन  स्ट्रीट फाइट में 2 फाइटर्स के बीच खूनी लड़ाई होती थी जिसमें जीतने वाले को 150  पीसो और हारने वालों को 100 पीसो मिलते थे  जो आज के भारतीय रुपए के हिसाब से मात्र 200 से 250 रूपये  तक थे.

लगभग 2 वर्ष तक मनीला की सड़कों पर संघर्ष और छोटी-छोटी लड़ाई लड़ने के बाद मेनी पैकिओ के जीवन ने उस वक्त करवट ली जब उन्हें  उनकी काबिलियत के कारण एमेच्योर बॉक्सिंग क्लब की तरफ से फाइट करने के लिए चुन लिया गया. अपने मजबूत इरादों और  कड़ी मेहनत के कारण 15 साल की उम्र तक मेनी पैकिओ ने खुद को सर्वश्रेष्ठ जूनियर मुक्केबाज के रूप में स्थापित कर दिया था . नेशनल अमेच्योर  बॉक्सिंग टीम की तरफ से मुक्केबाजी करते हुए मेनी ने शानदार 60 जीत और चार हार का रिकॉर्ड बनाया जो एक बेहतरीन रिकॉर्ड था.

दोस्तों आपको बता दें कि 2 मई 2015 को  लास वेगास के नवादा में स्थित एमजीएम ग्रैंड एरिना में दुनिया का सबसे महंगा बॉक्सिंग मैच हुआ था इस मैच में एक तरफ थे कभी ना हारने वाले पांच  डिवीजन के विश्व चैंपियन फ्लॉयड मेवेदर जूनियर और दूसरी तरफ 8 डिवीजन के विश्व चैंपियन मेनी पैकिओ।दोस्तों आपको बता दें कि इस पेपर व्यू मैच को बॉक्सिंग इतिहास का सबसे महंगा मैच बताया गया था दोस्तों आपको  बता दे कि इस बॉक्सिंग मैच  को फाइट ऑफ द सेंचुरी भी कहा गया सनी इसे इस सदी की सबसे बड़ी फाइट का खिताब भी दिया गया था.

दोस्तों मेनी पैकिओ  और मेवेदर जूनियर के बीच होने वाले इस वेल्टरवेट चैंपियनशिप मैच  को लेकर पूरी दुनिया के लोगों में उत्साह था. दोस्तों इस फाइट ऑफ सेंचुरी में तकरीबन  25000  करोड़ रूपये का दांव लगा हुआ था. जी हां दोस्तों आपने बिल्कुल सही सुना 25000 करोड रुपए.

मेनी पैकिओ और मेवेदर के बीच हुई इस दुनिया की सबसे महंगी फाइट में में मेनी पैकिओ को मेवेदर जूनियर  के हाथों हार का सामना करना पड़ा था   इस मुकाबले में   मेवेदर जूनियर 116 - 112 से  जीत दर्ज की.

12 राउंड तक चले इस महा मुकाबले में मेनी पैकिओ  ने काफी आक्रामक तरीके से बेहतरीन प्रदर्शन किया और सिर्फ 4 पॉइंट के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस महा मुकाबले में हारने के बावजूद मेनी पैकिओ  को 761 करोड रुपए मिले जी हां दोस्तों आपने बिल्कुल सही सुना  761 करोड रुपए और जितने वाले मेवेदर को को तकरीबन 1200 सौ करोड़ की कमाई हुई. दोस्तों कभी वह वक्त था जब मेनी को मनीला की सड़कों पर स्ट्रीट फाइट जीतने पर 150   रुपए मिलते थे और एक यह वक्त था जब उन्हें हारने के बावजूद ₹761 की कमाई हुई थी.

दोस्तों मेनी पैकिओ का जीवन दुनिया भर के ऐसे लोगों के लिए मिसाल है जो गरीब हैं और गरीबी में संघर्ष करते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं. पैसे और रुपए से गरीब व्यक्ति भी अमीर और सफल हो सकता है पर अगर आपके अंदर कड़ी मेहनत और संघर्ष करने की गरीबी है तो आप कभी भी सफल नहीं हो सकते है. दोस्तों बात को सच कर दिखाया  मेनी पैकिओ ने . मेनी पैकिओ बचपन में भले ही रुपए, पैसे से गरीब थे पर उनके अंदर कड़ी मेहनत और संघर्षकरने की गरीबी बिल्कुल भी नहीं थी.

कड़ी मेहनत और संघर्ष के दम पर ही मेनी पैकिओ दुनिया के सबसे महान और अमीर बॉक्सर बने. दोस्तों आप  रुपए और पैसों से गरीब हो सकते हैं पर कभी भी अपने सपनों, अपनी सोच और अपनी ताकत से गरीब मत होइए गा. अगर आपकी मेहनत बड़ी होगी, आपके सपने बड़े होंगे तो आपको सफलता जरूर मिलेगी. दोस्तों मेनी पैकिओ  के जीवन हमे एक और सीख मिलती है कि हमें मुसीबतों से टूटना नहीं बल्कि मुसीबतों को ही तोड़ देना चाहिए.

अपने बॉक्सिंग कैरियर के शुरुआती दिनों में मेनी पैकिओ ने काफी कड़ा संघर्ष किया था पर अगर मेनी पैकिओ इन मुसीबतों से डरकर टूट जाते तो आज वे वहां नहीं होते जहां पर वह आज हैं. मेनी पैकिओ का जीवन संघर्ष और सफलता की वह जीती जागती मिसाल है जिससे दुनिया का हर व्यक्ति प्रेरणा ले सकता है.


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Jack ma Success and motivational story in hindi

असफलता,फेलियर और रिजेक्शन की वो कहानी जो हर इंसान को सोचने पर मज़बूर कर देगी:


 दोस्तो जैक मा आज चीन के सबसे अमीर व्यक्ति हैं तथा 15 लाख करोड़ की कंपनी के संस्थापक ओर मालिक हैं पर यह तक पहुचने के लिए जैक मा ने जाने कितनी असफलताओ,फेलियर, और रिजेक्शन का मुंह देखा हैं.

दोस्तो इस भाग में हम जैक मा के FAILURES ओर रिजेक्शन पर विचार करते हुए सिख लेंगे की कैसे आप भी अपनी बाधाओं को पर करते हुए अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.दोस्तो दुनिया मे हर साल लाखों युवा मैनेजमेंट की डिग्री लेने और बिज़नेस सीखने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं पर क्या आपको पता हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी E COMMERCE कंपनियों में से एक अलीबाबा के संस्थापक जैक मा के पास कोई MBA या बिज़नेस की डिग्री नही हैं. डिग्री तो छोड़ दीजिए आपको यह जान कर हैरानी होगी कि 15 लाख करोड़ के कंपनी के मालिक को अच्छी से गणित तक नही आता हैं.

1.) आपको बता दें  की जैक मा प्राथमिक स्कूल में 2 बार ओर मिडिल स्कूल में 3 बार फैल हुए थे.

जैसे तैसे करके जैक मा ने स्कूली शिक्षा तो पूरी कर ली पर उनकी FAILUERS का सिलसिला कॉलेज में भी जारी रहा. जैक मा ने जब कॉलेज में भर्ती होने के लिए एंट्रेंस एग्जाम दिया तो वो उसमे भी 2 बार फेल हो गए, दोस्तो  आपको बता दे कि यह प्रवेश परीक्षा साल में केवल 1 बार ही आयोजित होती थी जिसके कारण उन्हें यह परीक्षा पास करने में 4 साल लॉग गए.

2.) गणित में 120 अंक में से मात्र 1 अंक मिले:


 दोस्तो आपको बता दे कि 15 लाख करोड़ के कंपनी के मालिक जैक मा को मैथ में 120 पॉइंट्स में से मात्र 1 पॉइंट्स ही मिले थे.जैक मा अपने बारे में बताते है कि मैं मैथ में अच्छा नही हूँ , नही मैन कभी मैनेजमेंट की पढ़ाई की हैं और इतनी बड़ी कंपनी को चलाने के बावजूद मुझे अभी भी एकाउंटिंग रिपोर्ट्स समझ मे नही आते हैं.

3.) हार्वड यूनिवर्सिटी में 10 बार रिजेक्ट हुए: 


दोस्तो आपको बता दे कि जैक मा ने कॉलेज की शिक्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध हारवर्ड यूनिवर्सिटी में 10 बार आवेदन किया था पर दसो बार उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया.आखिरकर जैक मा ने 1988 में हांग्जो सामान्य विश्विद्यालय से अंग्रेजी में BA जे साथ स्नातक किया.

4.) 30 से अधिक कंपनियों ने जैक मा को रिजेक्ट: 


जैक मा ने कॉलेज के ग्रेजुएशन करने के बाद 30 से अधिक कंपनियों में नॉकरियो के लिए आवदेन किआ था पर आपको यह जान के हैरानी होगी कि उन्हें तीसों कंपनियो में रिजेक्ट कर दिया गया था.

5.)  दोस्तो आपको बता दे कि जैक मा ने पुलिस अधिकारी बनने के लिए भी आवेदन किया था पर उन्हें सीनियर पुलिस ऑफिसर्स ने देखते ही उन्हें रिजेक्ट कर दिया था और कहा कि तुम इस नॉकरी के लिए लायक नही हो क्योकि जफकक मा एक छोटे और पतले कद काठी के व्यक्ति थे.

6.) KFC ने 24 में से 23 को चुना  1 को नही, वो थे जैक मा: 


इतनी बार असफलता और रिजेक्ट होने के बावजूद जैक  ने कभी भी हार नही मानी थी उन्हें जहा भी मौका मिलता वो वही आवेदन कर देते की शायद उन्हें कोई नॉकरी मिल जाये.1990 के दशक में जब विदेशी फास्टफूड कंपनी  KFC नई जैक मा के शहर में अपना पहला स्टोर खोल तो वहां काम करने के लिए 23 staffs की नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाए गए थे. बेरोजगार जैक मा को जब यह पता चला की kfc में staffs की नियुक्ति हो रही हैं तो उन्होंने भी आवेदन कर दिया ,पर दोस्तो आपको यह जान कर हैरानी होगी कि उन 23 आवेदनों के लिए 24 लोगो ने  अप्लाई किआ था जिनमे एक जैक मा भी शामिल थे पर उन 24 लोगो मे से लोगो 23 को kfc में नॉकरी के लिए चुन लिया गया पर एक को रिजेक्ट कर दिया गया और वो एक दुर्भायपूर्ण व्यक्ति था जैक मा.जैक मा को फिर एक बार रिजेक्शन का मुँह देखना पड़ा था.

7.) जैक मा से कम स्कोर लाने वालो को चुना गया पर जैक मा को नही: 


जैक मा अपनी असफलताओ कू याद करते हुए कहते हैं कि मेरे चचेरे भाई और मैं अपने शहर में स्तिथ एल 4 सितारा होटल में वेटर की नॉकरी के लिए गर्म दिनों में घंटो तक कतार में लगे रहते थे , वे कहते हैं कि ये मेरी किस्मत ही थी कि मुझसे कम स्कोर लाने वाले मेरे भाई को वेटर की नॉकरी के लिए सेलेक्ट कर लिया गया पर मुझे अस्वीकार कर दिया गया.

दोस्तो आपको बता दे कि  आख़िरकार् जैक मा को 800 रुपये प्रतिमाह पर एक शिक्षक की नॉकरी मिल गयी पर कुछ दिनों के बाद ही उन्होंने उसे छोड़ दिया और बिज़नेस की दुनिया मे कदम रखने की सोची.
दोस्तो आज हमने जैक मा के जीवन को आपके सामने रखने का प्रयत्न किया है हमारे हर पोस्ट की तरह इस post का उद्देश्य आपको प्रेरणा देना है .दोस्तो जैक मा का जीवन संघर्ष और सफलता की वो जीती जागती मिशाल है जिससे दुनिया का हर आदमी सिख ले सकता है .दोस्तो जैक मा के जीवन से जो सिख हमे सबसे ज्यादा प्रभावित करता है वो यह है कि बार बार असफल होने के बाद भी कोशिश करते रहना , कभी भी रिजेक्ट होने पर निराश न होना बल्कि अगली बार और ज्यादा जोर से कोशिश करना .

दोस्तो रिजेक्शन हमारी जीवन का ही एक हिस्सा है , हर इंसान कभी न कभी किसी न किसी छेत्र में एक बार रिजेक्ट जरूर होता है , पर जरूरी है रिजेक्शन से निराश होने के बजाय अगली कोशिश के लिए तैयार रहना .दोस्तो आज जैक मा चीन के सबसे अमीर व्यक्ति है और पूरी दुनिया के अमीरो के लिस्ट में वह 17वे स्थान पर आते है तो इसकी वजह रिजेक्शन ही है अगर वे उस  KFC की छोटी सी नौकरी में सेलेक्ट हो जाते तो शायद वे आज वहा नही होते जहाँ पर आज है . 

दोस्तो अगर आप भी रिजेक्ट कर दिए जाते है और बार बार असफल होते जाते है तब भी अपनी कोशिश को मत छोड़िये और लगे रहिये हो सके तो जिंदगी आपको उससे भी ज्यादा देना चाहती है जितने के लिए आप संघर्ष कर रहे हो .

Hima das motivational story

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 हिमा दास की प्रेरणादायक कहानी 


दोस्तों अगर आपको जिंदगी की रेस में जितना है Hima das motivational story तो आपको अपने पांव के छालों को नहीं बल्कि जीत की तरफ ध्यान देना पड़ेगा, दोस्तों जिस उम्र में आज के युवा tiktok, पब्जी और अन्य सोशल मीडिया एप्स के जरिए अपने जीवन को बड़े मौज से जीने में लगे हुए हैं ठीक उसी उम्र में एक लड़की अपने देश  भारत का नाम पूरे दुनिया में रोशन करने के लिए जी जान से लगी हुई  है.

दोस्तों आज की वह यह प्रेरणादायक कहानी हिमा दास Hima das motivational story  की है जिन्हें लोग गोल्डन girl  भी कहते हैं.  हिमा दास वह शख्सियत है जिससे हमारे देश के सारे युवा प्रेरणा ले  सकते हैं  दोस्तों यह कहानी आपको यह बताएं कि कैसे एक लड़की जिसके पास दौड़ने के लिए जूते नहीं थे वही लडक़ी कैसे ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतती है और  दुनिया के सबसे बड़े जूते कंपनियों में से एक का ब्रांड एंबेसडर बनती है.  दोस्तों यह प्रेरणा स्त्रोत कहानी ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट भारतीय धावक हिमा दास की है जो एक छोटे से गांव से निकलकर पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन करती है.

मध्यवर्गीय परिवार और छोटे गांव से हुई जीवन की शुरुआत:  भारतीय धावक हिमा दास  का जन्म  9 जनवरी 2000 को  असम राज्य के नागाव नामक जिले में हुआ था इनके पिता एक मध्यवर्ती साधारण परिवार में से थे  जो खेती का काम करते थे  हिमा का परिवार एक संयुक्त  ग्रामीण परिवार था जिसमें 17 लोगों और 54 परिवार धान की खेती करता था.

हीमा आरंभिक समय उनके परिवार के साथ ही उन धान की खेती में बितता था  हेमा अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी पर इस  सबसे छोटे संतान की उपलब्धियां सबसे बड़ी थी.

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सपने देखने की शुरुआत:



हमारे देश के नॉर्थ ईस्ट में अन्य खेलों की तुलना में फुटबॉल को ज्यादा पसंद किया जाता है जिसके कारण यहां के बच्चों और युवाओं का  यहपसंदीदा खेल है  जब हिमा दास विद्यालय में भर्ती हुई थी  तब उन्होंने वहां के लड़कों के साथ मिलकर फुटबॉल खेलने की  शुरू कर दिया, इसके अलावा जब भी  हिमा अपने खेत में जाती थी तो वहां भी फुटबॉल खेलने लग जाती थी बचपन से ही के कारण उनकी  स्टेमिना काफी अच्छा हो गई थी, हिमा दास इन दिनों फुटबॉलर बनकर देश का नाम रोशन करना चाहती थी पर उनकी किस्मत में तो कुछ और लिखा था.

सन 2016 मैं जवाहर मोदी विद्यालय के फिजिकल एजुकेशन के टीचर ने जब उन्हें  फुटबॉल मैच के दौरान दौड़ते हुए देखा तो  वह  दंग रह गए. इसके बाद उन्होंने ही  हिमा को फुटबॉल छोड़कर धावक बनने की सलाह दे डाली, PT टीचर  शमशुल हक  की सलाह पर उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया, हिमा दास की प्रतिभा को और निखारने के लिए समसुल हक  ने हिमा दास का परिचय ओके स्पोर्ट्स  एसोसिएशन के गौरी शंकर राय से  करवाई, इन दोनों को कहने पर हीमा है जिला स्तर को  एक स्पर्धा में भाग लिया  शांताराम कुछ करना  इस स्पर्धा में एक तरफ  दामि  और  ब्रांडेड जुटे  पहने प्रतियोगिता  थे  तो दूसरी तरफ पैसे ना होने के कारण सस्ते और लो क्वालिटी  के जूते  पहने हिमा भले ही हेमा के पास दूसरे की तरह  अच्छे जूते नहीं थे  पर उनके पास थी उनकी प्रतिभा, उनकी मेहनत और उनके मजबूत  इरादे. 

 इस स्पर्धा में हीमा ने अपनी प्रतिभा को दिखाते हुए सब को बड़ी आसानी से पछाड़ दिया और  पहला का जलवा  पायदान  यानी 2 गोल्ड मेडल हासिल किया, इस प्रतिस्पर्धा के दौरान निपुण das जो एक........ थे उनकी नजर हीमां पर पड़े और  वे हिमा की अद्भुत गति को देखकर हैरान थे , निपुण das हेमा को देखते ही उसके प्रतिभा को पहचान गया, अब मैं समझ गए hima का सही से मार्गदर्शन किया जाए तो वह पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर सकती है.निपुण das हीमा को छोटे से गांव से निकालकर ग्वाहाटी लेकर जाना चाहते थे ताकि वहां उनकी अच्छी सी  ट्रेनिंग हो सके जब भी मां के परिवार वालों  का इस बात का पता चल गया  तो पहले उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वह हिमा को गुवाहाटी  ले जाने और उनकी ट्रेनिंगका खर्च वहन करने में असमर्थ है,इस बात का पता जब निपुण दास को चला तो उन्होंने सोचा कि वह  बेशकीमती हीरे को इस तरह बेकार नहीं होने दे सकते फिर भी हिमा की घर गए और उनके परिवार वालों को इस बात के लिए राजी करवाया, साथ में ही हिमा के खर्च उठाने का भी वादा किया.


बेहतरीन प्रेरणात्मक कहानियाँ जो आपका जीवन बदल हैं | Best Life Changing Motivational Stories In Hindi.


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परीक्षा की शुरुआत :  

नेपुर दास, हिमा लेकर  गोवा हटी चले गए और  अब  ट्रेनिंग का वक्त था  पहले निपुण das  100  मीटर की ट्रेनिंग दे  और रेस के लिए तैयार करवाया लेकिन  प्रतिभा संपन्न  हिमा  ने 200 और 400  मीटर की रेस भी करने लगी.

कड़ी मेहनत,  प्रतिभा है आपको सफलता दिलाते हैं :  जुलाई 2018  से हीमा  की सफलताओं की शुरुआत हुईजुलाई 2018 में फिनलैंड के  टेंपरे मैं आयोजित  विश्व  अंडर -20- चैंपियनशिप 2018  प्रतियोगिता में भाग लिया और स्वर्ण पदक जीता  दास ने 400 मीटर स्पर्धा को 51.56 मेंपूरा किया। 


पहले हाथ लगी निराशा:


नूपुर दास ने  नेतृत्व मैं अप्रैल 2018  मैं गोल्ड कोस्ट में खेले गए  कॉमनवेल्थ गेम्स में हेमा ने हिस्सा लिया:  400 मीटर की स्पर्धा में हीमा  दास ने 51 मिनट 32 सेकंड में दौड़ पूरी करते हुए  छठवां स्थान प्राप्त किया था 4×400  मीटर कि स्पर्धा  मैं सातवां स्थान प्राप्त किया,  इतनी कड़ी मेहनत के बाद जब  सातवां  पायदान पर ,  तो उनका मन निराशा से भर गया  क्योंकि  वाह जानती थी कि उन पर उनके कोच, उनके परिवार और पूरे देश का भरोसा टिका हुआ है, इस बात ने हीना को पहले  निराश किया परंतु उन्होंने अपने मन पर  निराशा हावी नहीं होने दी  और पहले  से भी अधिक मेहनत करने लग गई.

कभी नहीं थे पहनने के लिए जूते, अब बनी adidas की  ब्रांड एंबेसडर:



 सफलता की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है पर  के असली परिभाषा क्या है अगर आप की परिभाषा चाहिए तो आपको ऊपर की यह पंक्तियां पढ़नी चाहिए.एक वक्त ऐसा था  जब भी मां के पास पढ़ने के लिए जूते तक नहीं थे वह  फटे पुराने जूते पहन कर स्पर्धा में भाग लेते थे  और एक के वक्त है जब उन्होंने प्रतिभा, कड़ी मेहनत से दुनिया के  सबसे बड़े  जूते कंपनियों में से एक की ब्रांड अंबेसडर बन गई. सितंबर 2018 में एडिडास के  भारतीय शाखा ने एक  चिट्ठी लेकर हिमा को  अपना ब्रांड  एम्बेसडर  बनाया , का नाम  एडिडास के जूते पर छपता है , आज  हिमा खुद एक ब्रांड है,  इसके अलावा हिमा दास को 2018 में  अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया, हेमा को 2018 में  यूनिसेफ इंडिया के भारत  कि पहले युवा  के रूप में नियुक्त किया गया था.

हिमा के जीवन से सीख


आपको बता दें कि सिर्फ 18 साल की भारतीय धाविका  हिमा दास" गोल्डन गर्ल"  और  डीग एक्सप्रेस प्रेस के नाम से मशहूर है,  और विश्व स्तर  पर स्वर्ण पदक जितने का इतिहास रचने वाली हिमा वाली भारतीय महिला है,  साथ ही किसी  वैश्विक दौड़ प्रतियोगिता  मैं स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला  एथलीट है
हिमा देश के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो  देश के छोटे गरीब इलाकों से आते हैं और संसाधनों की कमी से अपने सपने को पूरा नहीं कर पाते हैं  हिमा दास  उनको प्रेरणा देती है  देश का हर युवा  अपने कड़ी मेहनत और इरादों से  बेडियो को काट कर अपने  सपने को पूरा कर सकता है

गुरु का महत्व: 


 हमारे समाज में गुरु को हमेशा महत्व दिया गया है, गुरु ही है जो हमारे कमजोरी और ताकत को पहचान करा में सही मार्ग दिखाता हुआ विजय के पथ पर ले जाता है हिमा दास के  जीवन में उनके गुरु का काफी योगदान था  चाहे वह पीटी टीचर हो जिन्होंने फुटबॉल छोड़, एथलीट में आने की सलाह दीया  नूपुर दास जिन्होंने हेमा को ताकत  प्रतिभा  को पहचान कर उनका मार्गदर्शन किया
हिमा के जीवन में सबसे बड़ा योगदान उनके coach नपूर्ण दास का रहा जिन्होंने  dhing साधारण लड़की को गोल्डन गर्ल बनाया और, निपुण दास ने ही  बेशकीमती  हीरे को निकाला था और उनके  ही मार्गदर्शन में इस बेशकीमती हीरे आगे चलकर भारत का नाम रोशन किया.








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