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धर्मपाल गुलाटी:कैसे तांगा चलाने वाला बना मसालों की दुनिया का बादशाह.

धर्मपाल गुलाटी:कैसे तांगा चलाने वाला बना मसालों की दुनिया का बादशाह.


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दोस्तों हम अपने जीवन में हजारों लोगों से मिलते हैं लेकिन  उन हजारों लोगों  मैं से सिर्फ कुछ लोगों का प्रभाव ही हमारे जीवन पर पड़ता है  हमारा देश भारत ऐसे ही महान कर्म प्रधान व्यक्तियों की भूमि है, जिन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष और कड़े इरादे से  ऐसे ऐसे उदाहरण पेस किया है  जो हर भारतीय को उनके सपने पूरे करने के लिए प्रेरणा देते हैं  दोस्तों आज की  इस सच्चे कहानी मैं आपको बताएंगे कि  कैसे एक तांगे चलाने वाला और पांचवी पास वाले व्यक्ति अपनी बुद्धि मेहनत और संघर्ष के दम पर मसाले के व्यवसाय का राजा बनता है.


कैसे तांगा चलाने वाला बना मसालों की दुनिया का बादशाह. 


दोस्तों भारत दुनिया में अपने मसालों के लिए क्रश दीया मसालों की स्वाद की पूरी दुनिया  दीवानी है  और भारतीय मसालों पर राज करती है  एमडीएच कंपनी वह एमडीएच कंपनी जिसके मसालों का इस्तेमाल तो आपने आपने भी अपने घर में किया ही होगा, दोस्तों आज हम मसाला बनाने वाले से लेकर देश के लोगों के लिए मिसाल बनने तक के एक जीवन से  परिचय कराएंगे और यह जानेंगे  कि कैसे एक तांगा चला कर अपना जीवन यापन करने वाला व्यक्ति मसालों का  बादशाह बनता है.

दोस्तों आप सब ने टीवी पर एमडीएस मसालों का विज्ञापन तो देखा ही होगा इस विज्ञापन में आपको हमेशा एक बुजुर्ग व्यक्ति दिखते हैं ऊर्जा के साथ मसालों का विज्ञापन करते हैं, इस बुजुर्ग व्यक्ति को देखकर आप सब भी नहीं सकते कि बुजुर्ग वह महान का प्रधान  व्यक्ति है  जिनकी जिंदगी हजारों उद्यमियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है दोस्तों  यह बुजुर्ग व्यक्ति ही  एमटीएच  कंपनी के मालिक धर्मपाल गुलाटी  है जिन्हें भारत में मसालों का बादशाह कहा जाता है

प्रारंभिक जीवन:

  मसालों के राजा कहे जाने वाले महाराथ धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के  सियालकोट में एक  सामान्य परिवार में हुआ था उनके पिता महाराथ  चुन्नीलाल एक सामाजिक संगठन में काम करते थे इसी ऑर्गनाइजेशन में  चुन्नीलाल  जी ने अपने मसालों का एक  छोटा  कारोबार खोला था जिसका नाम  mahashian dihahi pvt.ltd  था,  उनकी माता चानन देवी  धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी  धर्मपाल गुलाटी का परिवार दयानंद सरस्वती  द्वारा sayapit  समाज के अनुयाई थे. 


पढ़ाई में थे कच्चे :  

धर्मपाल गुलाटी बचपन से ही काफी चंचल प्रवृत्ति के थे  और उनका पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था हर माता-पिता के  तरह चुन्नी लाल गुलाटी वे चाहते थे कि  उनका बेटा पढ़े लिखे और बड़ा आदमी बने पर जब वे अपने बेटे को देखे तो उन्हें काफी निराशा होती. धर्मपाल गुलाटी ने जैसे तैसे करके चौथी कक्षा पास तो कर ले  तुरंत जब उन्होंने पांचवी क्लास की परीक्षा दी तो फेल हो गए  पढ़ाई लिखाई में उत्साह नहीं होने के कारण और पांचवी में फेल हो जाने के कारण धर्मपाल गुलाटी ने पढ़ाई को छोड़ने का निश्चय कर लिया अपने बेटे के इस तरह पढ़ाई छोड़ने की बात से उनके पिता को काफी निराशा हो गई थी कि कभी उन्हें अपने बेटे  के  भविष्य  की चिंता सताने लगी  अपने बेटों को  देखकर  सोचा कि अब यह तो पढ़ाई करेगा नहीं इसलिए  इससे कोई कारीगरी यह हुनर सिखा दी जाए  जिससे कि यह आगे चलकर  अपने पैरों पर खड़े होने के लायक बन जाए  इसके बाद  chuन्नी लाल गुलाटी अपने बेटे के पास की  बढ़ई के पास काम सिखाने  और करने के लिए भेज दिया  लेकिन कुछ दिनों तक वह काम करने के बाद  गुलाटी जी ने  वह काम करना छोड़ दिया।

15 साल की उम्र तक आते-आते धर्मगुलाटी जी सैकड़ों  काम किए पर किसी भी काम में  ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए  अपने बेटे  के इस चंचल मन  को देखकर चुन्नी लाल गुलाटी ने यह फैसला लिया  कि वे अपने  बेटे से ही अपने दुकान मिर्च मसाले वाले में काम करआएंगे और व्यवसाय की गुड  सिखाएंगे. धर्मपाल गुलाटी अब अपने पिता के साथ उसी मिर्च मसाले की दुकान में काम करने लगे धर्म पाल गुलाटी के पिता मसाले की दुकान  मैं उस इलाके की एक प्रतिद्वंदी दुकान थी, उनके द्वारा बनाए गए उत्कृष्ट मसालो को कारण उस क्षेत्र में उन्हें देगी मिर्च वाले  के नाम से जाना जाता है  अपने पिता के इसी नामको बनाएं  रखने के लिए  धर्मपाल गुलाटी ने अपना पूरा ध्यान अपने पिता द्वारा सिखाई जाने वाली गुरु में केंद्रित किया और अपने मिर्च मसालों के कारोबार  को बढ़ाने में लग गए.


संघर्षों की शुरुआत: 

 अभी सब कुछ ठीक चलना शुरू हुआ था कि किस्मत ने उनसे सब कुछ  छीन लिया  यह दोर  था आजादी  का  जब देश अपनी  200 वर्षो की गुलामी को खत्म करने के लिए जंग लड़ रहा था .सन 1947 में भारत   के लोगों को आजादी मिली  आजादी के साथ-साथ  वह घाव भी मिले  जिसका दर्द आज भी लोग भाग रहे हैं  1947 में आजादी मिलने के बाद देश के विभाजन को  लेकर पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे इस दंगे में 1000000 लोगों की मौत हुई और लाखों को अपना अपना घर बार छोड़कर पलायन करना पड़ा  इस भयानक नरसंहार से धर्मपाल  गुलाटी का परिवार भी अछूता नहीं रहा  जन्म स्थान  सियालकोट तक पहुंच गई  जहां हजारों  हिंदुओं को जान से मार दिया गया यह दुकान और संपत्ति जला दी गई इन सब से बचने के लिए  पलायन एकमात्र रास्ता  था.

इसलिए घर में  धर्मपाल गुलाटी जी भी  सियालकोट छोड़कर भारत  के लिए निकल गए. भारत पहुंचने के बाद उन्होंने कुछ दिन अमृतसर के रिफ्यूजी कैंप में  बिताएं   फिर वहां से वह देश की राजधानी दिल्ली में अपने एक  रिश्तेदार के घर आ गए.देश के विभाजन के बाद उनका घर, दुकान, व्यवसाय  सब, पाकिस्तान के हिस्से में चला गया  और सब बर्बाद हो गया, अब धर्मपाल गुलाटी चाह कर भी अपने घर वापस नहीं जा सकते थे. दिल्ली पहुंचने के  बाद उनके परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब हो गई थी  क्योंकि  उनके परिवार के   पास  कोई साधन नहीं रह गया था अपने परिवार की स्थिति को देखकर, गुलाटी दिल्ली में काम ढूंढने निकल पड़े पर बहुत काम  ढूंढने के बाद  भी उन्हें कोई काम नहीं मिला धर्मपाल गुलाटी जब पाकिस्तान  आकर हिंदुस्तान आए थे तब उनके पास कुछ पैसे थे इसी पैसों से  अतः  उन्होंने एक तांगा(घोड़ा-गाड़ी)  खरीदी और तंग चलाने लगे, धर्मपाल गुलाटी ने कुछ दिनों तक तांगा चलाया फिर उन पर उनकी चंचल मन की प्रवृत्ति होने लगी, क्योंकि तांगा चलाकर इतने पैसे नहीं मिल पा रहे थे कि अपने परिवार का  खर्च चला सके  अतः  मैं  उन्होंने तांगा चलाने  का काम छोड़ दिया।

अपनी ताकत को पहचाना :  

हर इंसान मैं कोई ना कोई  विशेषता और ताकत होती है जो मनुष्य अपनी ताकतों को पहचान लेता है वह सफल हो जाता है, तांगा चलाने छोड़ने  यह बात उन्होंने अपने  पुराने व्यवसाय में  शुरुआत करने का निर्णय लिया, परंतु वह इतना आसान नहीं  होने वाला था क्योंकि अब  वे सियालकोट में नहीं  थे बल्कि दिल्ली में थे जहां उनके पास कुछ नहीं था  सियालकोट में उनके पिता की अपने दुकान थी वे क्षेत्र के सबसे अच्छे मसाला  के व्यापारी थे और वह  सारे संसाधन  मौजूद थे, उनकी मसालों की दुकान  अपने क्षेत्र मैं नाम और goodwill हासिल कर चुकी थी  और एक अच्छा कस्टमरbare  भी था,  परंतु दिल्ली में  यहां उन्हें कोई जानता  तक नहीं था धर्मपाल गुलाटी को अब फिर से जीरो से शुरुआत करनी थी,  परंतु धर्मपाल गुलाटी इन सब से घबराएं नहीं क्योंकि उन्हें मसाले  के व्यवसाय में काफी अनुभव था वे खुद अपने पिता के साथ मसाला पीसने थे, अपने पिता  द्वारा किए गए कार्यों और सिखाए गए व्यवसाय  गुरु से प्रेरित होकर  उन्होंने फिर से अपनी  पुश्तैनी व्यवसाय शुरू किया  और मसालों के बादशाह बने.

संघर्ष ही आपको सफलता की ओर ले जाती है :

 दिल्ली में व्यवसाय को फिर से चलाने के लिए एक दुकान की  आवश्यकता थी  पर उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वाह दुकान  ले सके . इसलिए उन्होंने अपने  खरीदे गए टांगो  को बेचकर कुछ पैसे जुटाए और उन  लकड़ी की एक छोटी सी झोपड़ी बनाई  और इसमें अपनी व्यवसाय की पुनः शुरुआत की. धर्मपाल गुलाटी को अपने व्यवसाय के बारे में पहले से ही पूरी जानकारी थी  इसलिए उन्हें अपने व्यवसाय  को  फिर से  शुरू करने में कोई दिक्कत नहीं हुई.

धर्मपाल  गुलाटी  बाहर से कच्चे मसाले खरीद के लाते और उस छोटी सी झोपड़ी में अपने हाथों से पीसते थे धर्मपाल गुलाटी इन पिसे हुए मसालो को दिल्ली के स्थानीय बाजारों में बेचा करते थे,अब धर्मपाल गुलाटी के जीवन का बस एक ही मकसद था अपने पिता द्वारा शुरुआत की गई दुकान एमडीएच को पुनः स्थापित करना धर्मपाल गुलाटी  उस छोटी सी झोपड़ी में  ही पूरी मेहनत  से मसाले  कूटने और पीसने का कार्य करने लगे. धर्मपाल गुलाटी के मसालों की क्वालिटी इतनी अच्छी थी कि लोग दूर-दूर से उनके मसाले खरीदने उनके पास आने लगे. दोस्त आपको बता दें कि धर्मपाल गुलाटी थोड़ा पीछे गया मसाले अत्यंत शुद्ध और मिलावट रहित थे जिसके कारण उनके क्षेत्र  के लोगों का विश्वास उन पर बढ़ता चला गया. अपने मेहनत, क्वालिटी, प्रोडक्ट और लोगो  भरोसे की बदौलत उनका कारोबार पर दिन बढ़ता चला गया.

मसाले वाले से बने मिसाल :

अपने मेहनत संघर्ष और मजबूत इरादों से धर्मपाल गुलाटी ने वह कर  दिखाया जो आज  देश के युवा व्यवसाययो और entrepreneur के लिए प्रेरणा बना हुआ है पिता द्वारा शॉप पर गए कारोबार  का  न सिर्फ  बढ़ाया बल्कि उसे एक ब्रांड बनाया वह ब्रांड जिसका इस्तेमाल  तकरीबन भारत के हर घर में होता है. बहुत कम लोग ही महाराज जी की सफलता के पीछे के कठिन परिश्रम को जानते हैं.

उन्होंने अपने  ब्रांड एमडीएच का नाम  रोशन करने के लिए काफी मेहनत की और आज एमडीएस बैंड मसालों के भारतीय  बाजार में सबसे आगे हैं  एमटीएस ब्रांड आज भारतीय मसालों के सबसे बड़े ब्रांड है जिसका इस्तेमाल  हर भारतीय परिवार में होता है. आज एमडीएच कंपनी अपने मसालों को सिर्फ भारत में ही नहीं  बल्कि 60 से अधिक देशों में एक्सपोर्ट करती है  और इनके कई करोड़ ग्राहक है.

एमडीएस  ब्रांड आज 65 से अधिक तरह के मसालों का उत्पादन करती है  इसमें देगी मिर्च  सबसे फेमस है  पांचवी कक्षा फिर और तांगा चलाने वाले धर्मपाल गुलाटी आ  एक  लखपति हैं  उन्हें मसालों का बादशाह का जाता है उनकी  ब्रांड आज देश के सबसे बड़े ब्रांड में से एक है ... सबको  मूल बताते हुए  कहते हैं  कि आप दुनिया  को  वह  दे जो आपके पास सबसे बेहतरीन  और यकीन मानिए आपकी दिया हुआ बेहतरीन  अपने आप वापस आ जाएगा .धर्मपाल गुलाटी एक सफल व्यवसाई होने के साथ-साथ एक समाजसेवी भी हैं, उन्होंने समाज सेवा के उद्देश्य से कई स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण करवाया है अनगिनत करे बच्चों को भोजन, शिक्षा से लेकर शादी तक का खर्च उठाया है  आज 97 साल की उम्र में भी धर्मपाल गुलाटी  पूरे जोश के साथ अपने व्यवसाय और सामाजिक कार्य में लगे हुए हैं

टांगे चलाने वाले व्यक्ति की प्रेरणा: 

धर्मपाल गुलाटी कभी तांगा चलाते थे और आज अरबों  के मालिक है , उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण, अपने अंदर की ताकत को पहचानने की कला है अगर तांगा चलाने छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी ताकत  यानी अपने पुराने किए गए काम  को फिर से करने का फैसला  नहीं लेते तो आज उनकी किस्मत कुछ और होती.

धर्मपाल गुलाटी आज देश के हजारों लाखों युवा उद्यमियों और  entrepreneur के लिए प्रेरणा स्त्रोत है जिस प्रकार  अटूट लगन , दूरदर्शिता और पूरी ईमानदारी के  कारण उन्होंने अपने  झोपड़ी के दुकान से 100 से भी अधिक देशों तक पहुंचाया वह प्रेरणा स्त्रोत और प्रशंसनीय भी है.

   

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