कैसे रेगिस्तान में मौत से 71 दिनों तक संघर्ष करने के बाद जिंदा बचा यह व्यक्ति - Ricky Megee survival story in hindi.
Best motivational stories in hindi.
दोस्तों आज आप इस पोस्ट में आप ऐसी ही एक सच्ची घटना के बारे में जानेंगे जिसे सुनकर आपके पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी, जरा सोचिए अगर कोई इंसान बेहोश हो जाए और रेगिस्तान के बीच में मरने के लिए छोड़ दिया जाए, जहां मीलों दूर सिर्फ रेगिस्तान हो न पीने के लिए पानी, न खाने के लिए खाना, न आदमी, न पेड़, न पौधा, आसपास बस मीलों दूर सिर्फ रेत और 45 डिग्री की भीषण गर्मी तो सोचो तो एक अकेला व्यक्ति जिसके पैरों में चलने के लिए जूते नहीं हैं गर्म रेत में वह 71 दिनों तक मौत के लिए संघर्ष करता रहा, उस विशाल रेगिस्तान से जीवित कैसे निकला, यह कहानी आपको बहुत कुछ सिखाएगी और आपको अपने जीवन की परेशानियों से लड़ने के लिए भी मजबूत बनाएगी, तो दोस्तों इस कहानी को अंत तक अवश्य पढ़े ।
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दोस्तों यह कहानी 1970 में शुरू होती है जब ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में जहां रिकी मेगी यानी इस कहानी के नायक का जन्म हुआ था, रिकी का बचपन एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए बच्चे की तरह बिता जो बचपन में पूरी तरह लापरवाह था। लेकिन जब रिकी 14-15 साल का हो गया, तो उसके परिवार की आर्थिक हालत बिगड़ना शुरू हुई जिसके कारण उनके परिवार ने इस शहर को छोड़कर दूसरे शहर जाने का फैसला किया और इसी दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई जिसके कारण रिकी ने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे काम करने लगा और इसी तरह छोटे-छोटे काम करते करते , रिकी 35 वर्ष का हो गया।
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अब उसके साथ एक ऐसी घटना घटने वाली थी जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी बदल दी यह 2006 की बात है जब उसे पोर्टलैंड, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में एक पत्र मिला, जिसमें उसे एक सरकारी नौकरी की पेशकश की गई थी, जिसके लिए रिकी को पूर्वी पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक की लंबी यात्रा करनी थी । नौकरी के लिए उसे ऑस्ट्रेलिया के विशाल रेगिस्तान को पार करना पड़ रहा था , रास्ते में रिकी ने देखा कि तीन लोगों की कार खराब हो गई है,तब रिकी एक इंसान के रूप में उन लोगो की मदद करता है और उसे अपनी कार में लिफ्ट देता है लेकिन बदले में वह लोग उसे धोखा दे देते हैं और वे रिकी को बेहोश करके उसकी कार और उसका सारा सामान सब लूट लेते और हैं अपने साथ ले जाते दोस्तों आपको हैरानी होगी की उन लूटेरो ने रिस्की के जुटे तक नहीं छोड़े थे और उसे भी चोरी कर अपने साथ ले गए थे।
इसके बाद उन लुटेरों ने रिक्की को उस सुनसान रेगिस्तान में मरने के लिए फेंक दिया जब रिकी को होश आया तो उसने देखा कि उसे रेगिस्तान में चिलचिलाती धूप के बीच एक लाश की तरफ फेंक दिया गया है अब रिकी के पास ऐसे मुश्किल हालात में दो ही रास्ते थे या तो वह बैठ कर मौत का इंतजार करें या फिर उस रेगिस्तान से निकलने की कोशिश करें जो कि था लगभग असंभव लेकिन रिकी ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और सोचा कि अगर मैं उसी दिशा में चलता रहा, तो शायद मैं बाहर निकल सकता हूं और यह निर्णय लेने के बाद, वह उसी दिशा में चलने लगा फिर उसने रेत का एक पहाड़ देखा और उस पर चढ़ गया।
फिर उसे बिना पानी की एक सूखी हुई नदी दिखाई दी और रिकी ने उसी नदी के किनारे चलने का फैसला किया लेकिन दोस्तों यह यात्रा बहुत ही कठिनक्योंकि दिन के समय रेगिस्तान की रेट कितनी गर्म हो जाती थी कि उस पर चलना किसी भट्टी पर चलने के बराबर महसूस होता था दिन के समय रेगिस्तान का तापमान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता था और ऐसी गर्मी में बिना खाए पिए पानी के चलना बहुत ही मुश्किल भरा काम था। इसलिए रिक्की को अपनी भूख मिटाने और जिंदा रहने के वह सांप, मेंढक, चीटियां, छिपकलियां या यहां तक कि झाड़ियों की जड़ों को भी खा जाया करता था
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इस यात्रा के दौरान वह कई बार गिरा और वह कई बार बेहोश हुए ,और गंभीर रूप से बीमार भी हुए लेकिन हर बार उन्होंने हिम्मत जुटाई और फिर से चलने लगा ऐसी विषम परिस्थितियों में केवल एक चीज रिकी के पक्ष में थी और वह थी बारिश का मौसम। दोस्तों रेगिस्तान में बारिश नहीं होती है फिर भी जो कभी-कभी थोड़ी बहुत बारिश हो जाती तो रिकी उस बरसात के पानी को किसी गड्ढे में इकट्ठा करता और पीता दोस्तों यह पानी रिक्की के लिए जीवन बचाने वाला था फिर भी रिकी को जिंदा रहने के लिए कई बार खुद का पेशाब पीना पड़ा पड़ता।
दोस्तों रेगिस्तान में खाना और पानी ठीक से न मिलने के कारण हालात बिगड़ते गए जैसे-जैसे दिन बीतते गए उसके शरीर का वजन कम होता गया। तेजी से शरीर कंकाल की तरह दिखने लगा उसका शरीर इतना कमजोर हो गया था कि वह दिन में कई बार बेहोश हो जाता था, ऐसे में उसके दिमाग में भी कई बार आत्महत्या का विचार आया लेकिन उसने हार नहीं मानी और अंतिम सांस तक कोशिश करने का संकल्प लिया और इसी तरह 71 दिनों तक हर दिन मौत से लड़ते रहे इस उम्मीद के साथ कि आज मैं इस रेगिस्तान से निकलूंगा और 72वें दिन वह वीरेन डूडो मवेशी थाने के पास पहुंचे जहां मार्क क्लिफर्ड नाम के शख्स की नजर उस पर पड़ी रिकी को देखकर मार्क को लगा जैसे कोई कंकाल भटक रहा हो क्योंकि रिकी का वजन 106 किलो 6 फीट कम से होकर 48 किलो रह गया था.
रिकी ने उस शख्स को अपनी पूरी आपबीती बताई और बेहोश हो गया रिकी हेलीकॉप्टर द्वारा अस्पताल ले जाया गया। जहां छह दिन के इलाज के बाद रिकी का ऐसे सुनसान रेगिस्तान से जिंदा निकलना सबके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था रिकी ने इस घटना पर 'लेफ्ट फॉर डेड' नाम से एक किताब भी लिखी जिसे लोगों ने खूब पसंद किया दोस्तों यह कहानी सिखाती है हमें कि हालात पर किसी का काबू नहीं है अगर जिंदगी है तो हमेशा छोटी-छोटी परेशानियां आती रहेंगी रिकी के पिता की बचपन में मौत ने उन्हें हर परिस्थिति में संघर्ष करना सिखाया और अपने रवैये की वजह से उन्होंने ऐसी परिस्थितियों में भी जीवित रहने के लिए संघर्ष किया जहां कोई भी आम आदमी शायद चार-पांच दिनों में उम्मीद खो देंगे और हार मान लेंगे इस घटना के बाद रिकी का जीवन के प्रति नजरिया पूरी तरह से बदल गया और निश्चित रूप से रिकी की यह कहानी आपके नजरिए को थोड़ा बदल देगी तो दोस्तों चाहे कैसी भी परिस्थिति हो अगर आप विश्वास पर कायम हैं और अपना शत-प्रतिशत देते रहो तो हालात भी एक न एक दिन हार मान लेते हैं और आपकी जीत पक्की है.