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कैसे 15 रूपये रोज़ कमाने वाला बना 1600 करोड़ की कंपनी मालिक -#Sudip dutta inspirational story in Hindi.

#Sudip dutta inspirational story in Hindi.

Sudip dutta motivational story in Hindi.

सुदीप दत्ता की प्रेरणात्मक कहानी। 

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दोस्तों सही सोच सकारात्मकता और संघर्ष ये वे तीन चीजे है जो हमे शून्य से शिखर पहुँचाती है  दुनिया का हर इंसान जो सफलता पाना चाहता है उसे इन तीन चीजों को अपनी जिंदगी में लाना चाहिए क्योकि हर इंसान का भाग्य उसे वह सब कुछ नहीं देता जो वह चाहता है.

 दोस्तों आज हम आपको  एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएँगे जिसने सही सोच सकारात्मकता और संघर्ष के डदम पर अपने आप को शुन्य से शिखर तक पहुंचाया है और दुनिया भर के लोगो के लिए एक मिशाल बना दोस्तों आज की सच्ची कहानी सुदीप दित्ता की है जो कभी गरीबी और मजबूरी के कारण एक देहादि मजदूर का काम करते थे पर आज अपनी म्हणत लगन और संघर्ष के कारण एक बड़ी कंपनी के मालिक है दोस्तों ये कहानी आपको बताएगी की कैसे कोई इंसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है और कच्छ भी बदल सकता है दोस्तों ये प्रेरणास्त्रोत सच्ची कहानी सुदीप दत्ता की है जो कभी १५ रूपए प्रतिदिन मजदूरी करके कमाते थे पर आज १६०० करोड़ के मालिक है .



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संघर्षमय बिता बचपन :


सुदीप दत्ता का जन्म १९७२  पश्चिम  बंगाल के दुर्गापूर के एक छोटे से गांव में हुआ था बंगाली परिवार में  सुदीप अपने माता पिता के में से थे। सुदीप के पिता इंडियन आर्मी  में एक सैनिक थे। सैनिक  होने के बावजूद उनकी पिता की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। हर सफल व्यक्ति की तरह सुदीप संघर्ष भी जन्म लेते ही शुरू हो गया था सं १९७१ में भारत और पाकिस्तान के युद्ध में सुदीप के पिता सिमा पर दुश्मनो का सामना करते हुए दुश्मन की एक गोली का शिकार हो गए हालाँकि गोली लगने से उनकी मौत नहीं हुई पर इस  घाव ने उनके परिवार  की जिंदगी को बदल के रख दिया था। 

गोली लगने के बावजूद  पिता की जान तो बच गयी पर गोली से घायल होने के कारण उन्हें लकवा  मर गया। लकवा मरने के कारण सुदीप के  पिता पिता न तो अब चलफिर सकते है और नहीं कोई काम कर सकते  है। ऐसे में पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे सुदीप के  परिवार पर अब कमाने खाने और बढ़ गया अब इन ६ लोगो  सुदीप के बड़े भाई के उप्पर आ गयी थी। 


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 १७ वर्ष की उम्र में उठ गया बड़े भाई और पिता का साया :

पिता के अश्वथ और लाचर होने के बाद अब पुरे परिवार की जिम्मेदारी अब सुदीप के बड़े भाई के ऊपर थी अब सुदीप  के बड़े भाई पर अपने माता पिता भाई बहिन  का पेट भरने जिम्मेदारी थी सुदीप के बड़े भाई के काम करने  और कुछ पैसे कमाने के बाद अब ऐसा लगने लगा था की परिवार पर आया संकटो का बोझ कुछ धीरे धीरे खत्म हो जायेगा पर भाग्य को  मंजूर था।


 अपने परिवारके पालन पोषण की चिंता और लगातार काम करते रहने के कारण कुछ दिनों बाद ही तबियत बिगड़ने लगी और वे बीमार पड गए सुदीप पर दुखो का पहाड़ उस समय से टूट पड़ा जब  गरीबी से जूझ रहे उनके परिवार में पैसे न होने के कारण उनके बड़े  भाई को सही इलाज ना  मिल सका और उनके बड़ेभाई की मृत्यु हो गयी पर शायद भाग्य को अब भी सुदीप  उनके परिवार पर रहम न आयी ...............

जब सुदीप के दोस्तों को इस बात का पता चला तो उन्होंने  यह काम करने के बजाय मुंबई जाने की सलाह दी  ताकि वे वह जाकर कुछ  बेहतर कर सके। दोस्तों हमने हमेशा  फिल्मो में देखा है की छोटे गांव और सेहर के बेरोजगार युवा माया नगरी मुंबई में जाकर अपनी किस्मत बदलने का ख्वाब देखते है ठीक उसी प्रकार अपने दोस्तों के कहने से प्रभावित होकर सुदीप भी मात्र 16  वर्ष की उम्र में मुंबई के लिए निकल पड़े बस फर्क इतना था की एक हीरो या स्टार बनने  नहीं बल्कि अपने परिवार का पेट भरने के लिए।

 

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15 रूपए रोज़ की मिली नौकरी :


मुंबई में आने के बाद सुदीप को एक   छोटे से कारखने में पैंकिंग लोडिंग और डिलीवरी का काम मिला जहा उन्हें उनके  काम के लिए 15 रूपए रोज़ मिलते थे ये वे दिन थे ये वे थे जब सुदीप को काफी संघर्षो का  सामना  करना पड़ता था .

मुंबई आने के बाद सुदीप का जीवन पहले की तुलना में काफी संघर्षमय हो गया था क्योकि उन्हें ₹450 महीने मिलने वाली वतन से खुद का खर्चा और बंगाल में रहने वाली अपनी मां का खर्चा चलाना पड़ता था .

आप सुदीप के संघर्ष में दिनों को इस तरह समझ सकते हैं कि मात्र कुछ रुपए बचाने के लिए सुदीप अपने अस्थाई घर से फैक्ट्री तक की दूरी 40 किलोमीटर पैदल ही तय करते थे ताकि बचे पैसों को अपने परिवार को भेज सकें रूपए रोज कमाने वाले सुदीप की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह एक अलग कमरा रहने के लिए ले सके इसलिए सुदीप उसी फैक्ट्री में काम करने वाले 15 से 20 मजदूरों के साथ एक छोटे से कमरे में मिलकर रहते थे जहां उन्हें  उन अनजान  मजदूरों के साथ खाना और सोना पड़ता था.

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अंत से शुरू की आरंभ:  


2 साल तक अत्यंत संघर्ष के साथ मजदूरी करने के बाद के जीवन  मैं उस  वक्त एक नया मोड़ आया जब तंगी से जूझ रहे उस फैक्ट्री के मालिक ने यह निर्णय लिया कि अब वे  फैक्ट्री को बंद कर देंगे और कुछ  वर्षों से लगातार हो रहे घाटे  को  ना सहन कर पाने के कारण उस फैक्ट्री को बंद करने का फैसला  वहां काम करने वाले बाकी मजदूरों के लिए एक बुरे सपने की तरह था पर इसके विपरीत सुदीप के लिए यह एक ऐसा मौका था जो उनकी जिंदगी को बदल सकता था.

 लगभग 3 वर्ष तक उस फैक्ट्री में काम करने के बाद अपनी दक्षता और काबिलियत के दम पर भी उस बिजनेस के क्रियाकलापों और व्यवसाय की सारी पेचीदगियों को बड़ी अच्छी तरह समझ चुके थे .

जब फैक्ट्री के बाकी सब मजबूर अपनी नौकरी के जाने जाने के डर में थे तब एहसास दिखाते रहो फैक्ट्री के मालिक से उस व्यक्ति को 16000 में खरीदने की मांग रखी दोस्त आप हैरान होंगे कि मां के 16000 में कोई फैक्ट्री मालिक अपनी फैक्ट्री को कैसे  होगा कि  बेच सकता है दोस्तों उसके पीछे  यह कारण था कि कई सालों से लगातार हो रहे घाटे के कारण फैक्ट्री का मालिक इतना निराश था कि वह किसी भी हाल में उस व्यक्ति से पीछा छुड़ाना चाहता था.

 सुदीप ने इस डूबी हुई फैक्ट्री को खरीदने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया फैक्ट्री के मालिक ने मात्र ₹16000 में या फैक्ट्री सुदीप के नाम कर दी पर एक शर्त भी रखी सुदीप के मालिक बनने और फैक्टरी के  प्रावधान को संभालने के बाद फैक्ट्री को जो भी मुनाफा होगा उसे 2 साल तक उस फैक्ट्री के मालिक को देना होगा।

 सुदीप को  अपनी मेहनत लग्न और व्यवसाई कौशल पर पूरा भरोसा था और उन्हें पूरा विश्वास था कि वह जल्दी इस घाटे वाली फैक्ट्री को एक मुनाफे वाली फैक्ट्री में बदल देंगे इसलिए उन्होंने उस पुरानी फैक्ट्री के मालिक की बात मान ली  और  2 साल तक मुनाफे देने की शर्त पर राजी हो गए

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शुरू हुआ फैक्ट्री के मजदूर से फैक्ट्री के मालिक बनने तक का सफर:


अपनी काबिलियत पर भरोसा होने से इंसान सब कुछ कर सकता है इस बात को सच कर दिखाया सुदीप ने दोस्त संदीप अब उस फैक्ट्री के मजदूर से मालिक बन चुके थे पर उनका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था यह तो उनके इस व्यवसायिक संघर्षों की शुरुआत थी सन 1990 के दशक में भारत  एलमुनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री का दौर अच्छा नहीं था.

 जब सुदीप अपनी एलुमिनियम  पैकेजिंग  फैक्ट्री के मालिक बने थे उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि उस कर्ज में डूबी हुई फैक्ट्री और मैं शायर को पुनः मजबूत और प्रॉफिटेबल बनाना 1990 के दशक में भारत में कुछ ना कंपनियां ही थी जो अल्मुनियम पैकेजिंग  इंडस्ट्री में  मैं बड़े आकार और आर्थिक मजबूरियों के कारण टिकी हुई थी जिनमें से जिंदल स्टील और इंडियन फॉल प्रमुख थी.

यह कंपनियां 1990 के दशक में इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्धि ऐसे में अपनी छोटी सी कंपनी को बाजार में इन कंपनियों के मुकाबले के लिए तैयार करना सुदीप के लिए एक बड़ी चुनौती थी.

शुरुआत में छोटे-छोटे आर्डर से कंपनी को खड़ा किया:


  जैसा कि हम जानते हैं कि बूंद बूंद से सागर सागर भरता है ठीक उसी प्रकार सुदीप ने अपनी कंपनी को खड़ा करने के लिए शुरुआत में अत्यंत ऑर्डर से काम चल रहा है इस इंडस्ट्री मैं बने रहने के लिए सुदीप की पहली चुनौती थी कि इस घाटे वाले कंपनी को मुनाफे वाली कंपनी में बदलना इस काम को सफल  सपने में उन छोटे-छोटे आर्डर का काफी योगदान रहा.

अपनी कंपनी घाटे से मुनाफे में लाना सुदीप  की दूसरी चुनौती थी कि अब इस छोटी सी कंपनी को एलुमिनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री के दिग्गज कंपनियों  जैसे जिंदल स्टील के प्रतिस्पर्धा में लाना परे कंपनियां सुदीप की छोटी कंपनियों के मुकाबले काफी बड़ी और आर्थिक रूप में मजबूत थी इसीलिए इन्हें टक्कर दे पाना आसान नहीं था  इसलिए सुदीप के पास  कंपनियों को टक्कर देने के लिए बस एक चीज बची थी वह है अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी को अच्छी बनाना।

 इसके बाद सुदीप ने अपनी प्रोडक्ट की क्वालिटी को अच्छी बनाना शुरू कर दिया  बस सुदीप के लिए बड़ी चुनौती थी कि कैसे अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के बारे में बड़ी कंपनियों को बताया जाए कि  उन  कंपनियां  तक उनके प्रोडक्ट पहुंचे  करने के लिए सुदीप खुद बड़ी कंपनियां  मैं जैसे  नेस्ले सन फार्मा सिप्ला में जाते और वहां के लोगों को अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी के बारे में बताते  इसके लिए सुधीर को काफी मेहनत करनी पड़ती थी उन्हें इन कंपनियों द्वारा शुरुआत में ज्यादा भाव नहीं दिया जाता था कंपनियों के अधिकारि  अधिकारी उनसे मिलने को मना कर देते लंबे इंतजार के बाद सुदीप कौन से मिलने का मौका मिलता था.

 इन सबके बावजूद सुदीप कभी निराश नहीं होते थे बल्कि और अपने काम में और ज्यादा लगन से लगे रहते थे  कड़ी संघर्ष और लगन के बाद धीरे-धीरे सुदीप की मेहनत रंग लाने लगी  थी उन्हें उनके प्रोडक्ट की क्वालिटी और कम दाम के कारण उन कंपनियों से आर्डर मिलने लग गया जहां वे अपने प्रोडक्ट के प्रमोशन के लिए जाया करते थे। 

 इसके बाद संदीप को नेस्ले, फार्मा के साथ देश की बड़ी-बड़ी दवाइयों की कंपनियों के आर्डर मिलने लग गए थे  अब सुजीत का जीवन पहले की तुलना में काफी बदल चुका था आप सभी पर घाटे की कंपनी के मालिक से अल्मुनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री के एक बड़े सफल व्यवसाई के रूप में जाने जाने लगे थे.

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वेदांता ग्रुप की कंपनियों को किया अपने अधीन:  


कुछ तो यहां तक पहुंचने के लिए सुदीप ने काफी संघर्ष की थी  और पैकेजिंग इंडस्ट्री मैं एकाधिकार रखने वाली उस वक्त की  दिग्गज कंपनियों के अधिकार को बाजार में खत्म कर दिया था.

 इसके बाद भी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने वाले सुदीप  को एक और प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा जब  प्रसिद्ध और बड़ी कंपनी वेदांता के मालिक सुनील अग्रवाल ने एलुमिनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री में कदम रखा.

 वेदांता समूह के मालिक अग्रवाल ने इंडियन फल आठ में चल रही कंपनी द्वारा इस इंडस्ट्री में कदम रखा कंपनी का सामना देश की सबसे बड़ी  बिजनेसमैन और  उनकी कंपनी से था पर सुदीप इन सब से विचलित नहीं हुए अपने कस्टमर सर्कल और अपने मार्केट पर पूरा नियंत्रण बनाए रखा और  अपना काम करते रहे  कुछ सालों तक सुदीप की कंपनी से प्रतिस्पर्धा करने के बाद आखिरकार वेदांता समूह ने सुदीप के व्यवसायिक रण कौशल के सामने अपने हथियार डाल दिए और अपनी इंडियन फल कंपनी को सुदीप के कंपनी...... अल्मुनियम ने वेदांता समूह द्वारा अधिग्रहण की गई.

 इंडियन फाइल में 55% हिस्सेदारी को 120 करोड़ रुपए में खरीद लिया इसके बाद वेदांता  वेदांता ग्रुप से ही हमेशा के लिए एलुमिनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री से बाहर हो गई.इस शानदार उपलब्धि  के बाद  भी सुदीप  के सपनों की उड़ान नहीं  रुकी  बल्कि अब वह पहले से ज्यादा मेहनत, लगन  से काम करने लगे

कारखाने के मजदूर से अग्रणी बने:  

अब  सुदीप करखाने के मजदूर से सोलह सौ करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक बन चुके थे अब उनकी अगली चुनौती अपनी कंपनी को भारत की अल्मुनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री के सबसे अग्रणी था . 

इसके लिए सुदीप ने अपनी पहुंच को देश की सबसे बड़ी FMCG और फार्मा कंपनियों तक  तेजी से बढ़ाना शुरू कर दिया। 

इसके बाद  सुदीप जी की कंपनी ने देश की फार्मा कंपनी के बीच अपनी पहचान लिया और उनका कारोबार बढ़ता गया . अपने कारोबार को बढ़ाने के तहत 1998 और 2000 के बीच सुदीप दत्ता कंपनी ने कलकाता भारत के विभिन्न  शहरों में 20 प्रोडक्शन की स्थापना की. सुदीप दत्ता की........alumunium अपने एलुमिनियम  क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी थी और इसे एनएसई और बीएसई में लिस्टेड किया गया है.


सुदीप दत्ता फाउंडेशन:  

सुदीप दत्ता ने अपने संघर्ष से  प्रेरित हो कर सुदीप दत्ता फाउंडेशन की स्थापना की इस फाउंडेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य  ग्रामीण क्षेत्रों के निम्न वर्गीय नौजवान युवाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण और सुविधा करवाना है ताकि वे अपने लिए  रोजगार के अवसरों का निर्माण कर सक. इसके साथ कुशल श्रमिकों को तैयार करना है  और उन्हें विभिन्न व्यवसाय कंपनियों में नियुक्त करना है.


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जीवन से सीख : 

दोस्तों आज मैंने आपको सुदीप दत्ता की सच्ची प्रेरणादायक कहानी को आपके सामने रखा ये कहानी देश के उन हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणा  है जो मेहनत और मजदूरी का काम करते हैं  दोस्तों आप अपने काम से मजदूर हो सकते हैं  पर अपनी सोच से कभी छोटा नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर आपकी सोच छोटी होगी तो आपका लक्ष्य भी छोटा होगा ऐसे में सफलता प्राप्त करना  आपके लिए कठिन हो सकता है

दोस्तों मेरे द्वारा कहे गए इस प्रसंग को सही कर दिखाया है सुदीप ने वह सुदीप जो कभी अपने पिता और भाई की मृत्यु और गरीबी से तंग आकर मुंबई आ गए थे  और ₹15 की दैनिक मजदुरी  करते थे.

पर आज 1600 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं  दोस्तों सुदीप का जीवन हमारे लिए जैसे युवाओं को संदेश देता है मेहनत लगन और सकारात्मक सोच के दम पर इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता है

दोस्तो सुदीप की सफलता से एक और महत्वपूर्ण सीख जो में मिलती है वह है कि किसी भी व्यवसाय को शुरू करने से पहले  उसे अच्छे तरह समझना पड़ता है।  दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि कंपनी के मालिक बनने के पहले सुदीप उसी फैक्ट्री के मामूली मजदूर थे पर उनके अंदर सीखने और  क्रियाकलापों को समझने की शक्ति थी

सुदीप के एक साधारण मजदूर से मालिक बनने के लिए उनकी सीखने ,समझ, लगन, कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच थी।  अगर आप चाहे तो आप भी सुदिप  जैसे सफलता पा सकते हैं पर उन इसके लिए आपको अपने पर विश्वास करना होगा और आगे बढ़ना होगा दुनिया की कोई शक्ति आप को रोक नहीं सकती  अगर आप खुद में विश्वास करते हैं सुदीप दत्ता देश के उन हजारों युवाओं को सीख देते है कि व्यसाय शुरू करने के पहले आपको पहले उसे जानना होगा, सीखना होगा और समझना होगा क्योंकि यह सब जाने बिना आप किसी व्यवसाय में सफल नहीं हो सकते। दोस्तो याद रखे दुनिया का कोई भी व्यक्ति आपका भाग्य भी नहीं बना सकता क्योंकि आप अपने भाग्य के निर्माता स्वय हैं

    

 









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