Vidur niti in hindi - महात्मा विदुर के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विचार और नीतियां जो हर किसी के धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं.
दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपके लिए लाए हैं महात्मा विदुर के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विचार और नीतियां जो हर किसी के धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. महात्मा विदुर महाभारत के सबसे ज्ञानी पात्रों में से हैं जिन्होंने सुदाम लोगों को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है, खुद भगवान श्री कृष्ण ने महात्मा विदुर को धर्मराज कहा है. (विदुर के अनमोल वचन)
Vidur niti in hindi
महात्मा विदुर एक दासी पुत्र थे फिर भी उन्हें शास्त्रों, वेदों ,और राजनीति का बहुत ही अच्छा ज्ञान था. दोस्तों आपको बता दें कि महाभारत के युद्ध में पांडवों के साथ-साथ श्री कृष्ण जी महात्मा विदुर के बताए गए मार्गो पर चलते थे. महात्मा विदुर एक बहुत ही दूरदर्शी व्यक्ति है और उन्होंने पहले ही धृतराष्ट्र को बता दिया था कि महाभारत के युद्ध का क्या अंजाम होगा।
महात्मा विदुर द्वारा कही गई बातें और उनकी नीतियां न सिर्फ महाभारत के युद्ध में बल्कि आज के इस दौर में भी सही साबित होती हैं.
दोस्तों अगर हम महात्मा विदुर के नीतियो का पालन करें तो न सिर्फ हम एक श्रेष्ट इन्सान बनेगे बल्कि हमें इस दुनियादारी को समझने में भी काफी मदद मिलेगी।
Vidur niti in hindi
1.अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता यह गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से छुट नहीं करते, वही पंडित कहलाता है
2. जो कर्मों का सेवन करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथी जो आस्तिक और श्रद्धालु हैं , उसके वे सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं
3. क्रोध हर्ष गर्व लज्जा, उद्दंडत तथा अपने को पूज्य समझना- यह भाव जिसको पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पंडित कहलाता है
4. दूसरे लोग जिस के कर्तव्य, सलाह और पहले से किए हुए विचार को नहीं जानते बल्कि काम पूरा होने पर ही जानते हैं वही पंडित कहलाता है
5. विवेकपूर्ण बुद्धिमान वाले पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने की इच्छा रखते है और करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना नहीं करते
6. भरत कुलभूषण पंडित जन श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं उन्नति के कार्य करते हैं तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते
7. जो अपना कर्तव्य छोड़कर दूसरे के कर्तव्य का पालन करता है तथा मित्र के साथ असत आचरण करता है वह मूर्ख कहलाता है
8. जो शत्रु को मित्र बनाता है तथा मित्र से द्वेष करते हुए उसे कष्ट पहुंचाता है तथा सदेव बुरे कर्मों का आरंभ करता है मोड़ चितवाला कहते हैं
9. भारत श्रेष्ठ जो अपने कामों को ही फैलाता है संवत संदेह करता है और शीघ्र होने वाले कामों में देरी लगाता है वह मूड है
10.मूड चितवाल वाला अधम मनुष्य बिना बुलाए ही भीतर चलाता है बिना पूछे ही बोलता है तथा अविश्वसनीय मनुष्य पर भी विश्वास करता है
11. स्वर दोष युक्त बर्ताव करते हुए भी जो दूसरों पर उसके दोस्त बताकर आछेप करते हैं तथा जो असमर्थ होते हुए व्यर्थ का क्रोध करता है वह मनुष्य महामूर्ख है
12. बहुत धन विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं चलता वह पंडित कहलाता है
13. मनुष्य अकेला बात करता है और बहुत से लोग उससे मौज उड़ाते हैं मौज उड़ाने वालों तो छूट जाते हैं पर उसका करता ही दोष का भागी होता है
14. अकेले स्वादिष्ट भोजन ना करें अकेला किसी विषय का निश्चय ना करें अकेले रास्ता ना चले और बहुत से लोग सोए हो तो उनमें अकेला ना जागते रहे
15. क्षमा सील पुरुषों में एक ही दोस का आरोप है दूसरे की तो संभावना ही नहीं है वह दोस्त है कि क्षमाशील मनुष्य को लोग असमर्थ समझ लेते हैं
16. जरा भी कठोर ना बोलना और दुष्ट पुरुषों का आदर ना करना इन दो कर्मों को करने वाला मनुष्य इस लोक में विशेष शोभा पाता है
17. जो निर्धन होकर भी बहुमूल्य वस्तु की इच्छा रखता और असमर्थ होकर भी क्रोध करता है- यह दोनों ही अपने शरीर को सुखा देने वाले कांटों के समान है
18. काम क्रोध और लोभ- आत्मा का नाश करने वाले नर्क के 3 दरवाजे हैं अच्छा इन तीनों को त्याग देना चाहिए
19. थोड़ी बुद्धि, दीर्घा सूत्री जंगबाज और स्तुति करने वाले लोगों के साथ नहीं करनी चाहिए यह चारों महाबली राजा के लिए त्याग करने योग्य बताए गए हैं विद्वान पुरुष ऐसे लोगों को पहचान ले
20. देवता पितर मनुष्य सन्यासी अतिथि पूजा करने वाला मनुष्य शुद्ध यश प्राप्त करता है
21. स्वयं दोष युक्त बर्ताव करते हुए भी जो दूसरे पर दोस बता कर आछेप करता है तथा जो असमर्थ होते हुए भी व्यर्थ का क्रोध करता है वह मनुष्य महामूर्ख है
22. मनुष्य अकेला दोष करता है और बहुत से लोग उससे मौज उड़ाते हैं मौज उड़ाने वाले तो छूट जाते हैं पर उसका करता ही दोष का भागी होता है
23. किसी धुरंधर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ वार संभव है एक को भी मारे या ना मारे मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ संपूर्ण राष्ट्र का विनाश करती है.
24. अकेले स्वादिष्ट भोजन ना करें अकेले किसी विषय का निश्चय ना करें यह रास्ता ना चले और बहुत से लोग सोए हो तो उन में अकेला ना जागते रहे.
25. केवल धर्म ही परम कल्याण कारक है एकमात्र छमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है एक विद्या हे परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाला है.
26. जो निर्धन होकर भी बहुमूल्य वस्तु की इच्छा रखता है और असमर्थ होकर भी क्रोध करता है यह दोनों ही अपने शरीर को सुखा देने वाले कांटों के समान है
27. राजन! यह दो प्रकार के पुरुष वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला
28. जो धनी होने पर भी दान ना दें और दरिद्र होने पर भी कष्ट सहन ना कर सके इन दो प्रकार के मनुष्य को गले में मजबूत पत्थर बांधकर पानी में डूबा देना चाहिए
29. दूसरे के धन का हरण दूसरे की स्त्री का संसर्ग और सूहृदय मित्र का परित्याग यह तीनों ही दोष नाश करने वाले होते हैं
30. काम क्रोध और लोभ यह आत्मा का नाश करने वाले नर्क के 3 दरवाजे हैं और अतः इन तीनों को त्याग देना चाहिए
31. भरतश्रेष्ठ! पिता माता अग्नि आत्मा और गुरु मनुष्य को इन पांच अग्नियो के बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए
32. पांच ज्ञानेंद्रियों वाला यदि एक भी इंद्रिय दोस युक्त हो जाए तो उससे उसकी बुद्धि इस प्रकार बाहर निकल जाती है जैसे मसक के छेद से पानी
33. राजन! धन की आय नित्य निरोग रहना स्त्री का अनुकूल तथा प्रिय वादिनी होना पुत्र का आज्ञा के अंदर रहना धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान यह 6 बातें इस मनुष्य लोग में सुखदायिनी होती हैं
34. राजन! निरोग रहना रेडी ना होना परदेस में ना रहना अच्छे लोगों के साथ मेल होना अपने वृत्ति से जीविका चलाना और निडर होकर रहना यह 6 मनुष्य लोग के सुख हैं
35. बुद्धि कुलीनता इंद्रिय निग्रह शास्त्र ज्ञान पराक्रम अधिक ना बोलना सत्ती के अनुसार दान और कृतज्ञता यह 8 गुण पुरुष की ख्याति बढ़ा देते हैं
36. जब बुद्धिमान दंभ ,मात्सर्य या पाप कर्म, राजद्रोह, चुगल खोरी समूह से बैर और मतवाले पागल तथा दूर जनों से विवाद छोड़ देता है वह श्रेष्ठ है.
37. जो दान होम देव पूजन मंगल कर्म , प्रायश्चित अनेक प्रकार के लौकिक अचार इन नित्य किए जाने योग्य कर्मों को करता है देवता लोग में उसे अद्भुत की सिद्धि करते हैं
38. जो अपने बराबर वालों के साथ विवाह मित्रता आहार तथा बातचीत करता है हीन पुरुषों के साथ नहीं और गुणों में बढ़े चढ़े पुरुषों को सदा आगे रखता है उस विद्वान की नीति श्रेष्ठ है