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Moral stories for kids in hindi - नैतिक गुणों का पाठ पढ़ाने वाली कहानियाँ

                  

Moral  stories for kids in hindi 

Moral stories in hindi

Moral  stories for kids in hindi


दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपके लिए कुछ बहुत ही अच्छे moral stories को आपके  लेकर आया हूँ इन moral stories in hindi  को पढ़कर आपका मनोरंजन होने के साथ साथ आपको जीवन के उन नैतिक गुणों के बारे में में भी पता चलेगा जिन नैतिक गुणों से  आप अपने  जीवन को बेहतर बना  सकते हैं 


                                 1.                              

Stories in hindi with moral

मुर्ख मित्र


एक नगर में चार मित्र रहते थे । उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे; चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमान् था । चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन संग्रह करें । इसी विचार से वे विदेशयात्रा को चल पड़े ।

कुछ़ दूर जाकर उनमें से सब से बड़े ने कहा-"हम चारों विद्वानों में एक विद्या-शून्य है, वह केवल बुद्धिमान् है । धनोपार्जन के लिये और धनिकों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये विद्या आवश्यक है । विद्या के चमत्कार से ही हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं । अतः हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे । वह चाहे तो घर वापिस चला जाये ।"

दूसरे ने इस बात का समर्थन किया । किन्तु, तीसरे ने कहा- "यह बात उचित नहीं है । बचपन से ही हम एक दूसरे के सुख-दुःख के सहभागी रहे हैं । हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा । अपने-पराये की गणना छो़टे दिल वालों का काम है । उदार-चरित व्यक्तियों के लिये सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है । हमें उदारता दिखलानी चाहिये ।"


उसकी बात मानकर चारों आगे चल पडे़ । थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला । उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे । तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा, "आओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें । विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं ।" यह कह कर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये । एक ने अस्थिसंचय किया, दूसरे ने चर्म, मांस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरु की । इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान् मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा - "जरा ठहरो । तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो । वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खाजायेगा ।"


वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया । तब वह बुद्धिमान् बोला - "यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ । लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊँ ।" यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया । इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया । जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया । तीनों मारे गये ।

(MORAL OF THE STORY): किताबी ज्ञान के साथ हमे व्यवहारिक और सा,सामाजिक ज्ञान भी होना चाहिए क्योकि बिना व्यवहारिक और सामाजिक ज्ञान के पड़ा लिखा व्यक्ति भी मुर्ख के सामान  होता हैं 


          2.            

Stories in hindi with moral

विजय बल से नहीं बल्कि  बुद्धि से होती हैं 


एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोड़ा रहता था। उसी पेड़ के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता। एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपटते देखा। अंडे खाकर सर्प चला गया कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया 'प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।'

कौए ने काफ़ी सोचा विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड़ उससे काफ़ी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा 'यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड़ की चोटी के किनारे निकट हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।'

कौवे की बात मानकर कौव्वी ने नए घोंसले में अंडे दिए जिसमे अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए। उधर सर्प उनका घोंसला ख़ाली देखकर यह समझा कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड़ से उड़ते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड़ पर ऊपर बना रखा हैं।

एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया। घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा। कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी 'तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?'

कौआ बोला 'नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।'

दोनों तुरंत ही लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमड़ी ने काफ़ी सोचने के बाद कहा 'मित्रो! तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरुरत नहीं हैं। मेरे दिमाग में एक तरकीब हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं।' लोमड़ी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमड़ी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पड़ें। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आएं। अगले ही दिन योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे। इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपड़ों व आभूषणों पर नजर डाली। कपड़े के ऊपर राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार रखा था कौव्वी ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया।


जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड़ गया। सभी सहेलियां चीखी 'देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं।' सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया। जब सैनिक कुछ ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा। सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा। वह चिल्लाया 'पीछे हटो! अंदर एक नाग हैं।' सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।

सीख(MORAL OF THE STORY) : सूझ बूझ का उपयोग कर हम बड़ी से बड़ी ताकत और दुश्मन को हरा सकते हैं, बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है। 


                                  3.                              

Stories in hindi with moral

नेवला का बलिदान 


एक बार राजशर्मा नाम के ब्राह्मण के घर एक पुत्र का जन्म हुआ ठीक  उसी दिन उसके घर में रहने वाली कुनली नामक मादा नेवली  ने भी एक नेवले को जन्म दिया । राजशर्मा की पत्‍नी बहुत दयालु स्वभाव की स्त्री थी । उसने उस छो़टे नेवले को भी अपने पुत्र के समान ही पाल-पोसा और बड़ा किया । वह नेवला सदा उसके पुत्र के साथ खेलता था । दोनों में बड़ा प्रेम था । राजशर्मा की पत्‍नी भी दोनों के प्रेम को देखकर प्रसन्न थी । किन्तु, उसके मन में यह शंका हमेशा रहती थी कि कभी यह नेवला उसके पुत्र को न काट खाये । पशु के बुद्धि नहीं होती, मूर्खतावश वह कोई भी अनिष्ट कर सकता है ।


एक दिन उसकी इस आशंका का बुरा परिणाम निकल आया । उस दिन राजशर्मा की पत्‍नी अपने पुत्र को एक वृक्ष की छा़या में सुलाकर स्वयं पास के जलाशय से पानी भरने गई थी । जाते हुए वह अपने पति राजशर्मा से कह गई थी कि वहीं ठहर कर वह पुत्र की देख-रेख करे, कहीं ऐसा न हो कि नेवला उसे काट खाये । पत्‍नी के जाने के बाद राजशर्मा ने सोचा, 'नेवले और बच्चे में गहरी मैत्री है, नेवला बच्चे को हानि नहीं पहुँचायेगा ।' यह सोचकर वह अपने सोये हुए बच्चे और नेवले को वृक्ष की छा़या में छो़ड़कर स्वयं भिक्षा के लोभ से कहीं चल पड़ा ।


दैववश उसी समय एक काला नाग पास के बिल से बाहिर निकला । नेवले ने उसे देख लिया । उसे डर हुआ कि कहीं यह उसके मित्र बच्चे को न डस ले, इसलिये वह काले नाग पर टूट पड़ा, और स्वयं बहुत क्षत-विक्षत होते हुए भी उसने नाग के खंड-खंड कर दिये।


सांप को मारने के बाद वह उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर राजशर्मा की पत्‍नी पानी भरने गई थी । उसने सोचा कि वह उसकी वीरता की प्रशंसा करेगी, किन्तु हुआ इसके विपरीत। उसकी खून से सनी देह को देखकर ब्राह्मण पत्‍नी का मन उन्हीं पुरानी आशंकाओं से भर गया कि कहीं इसने उसके पुत्र की हत्या न कर दी हो ।

 यह विचार आते ही उसने क्रोध से सिर पर उठाये घड़े को नेवले पर फैंक दिया । छो़टा सा नेवला जल से भारी घड़े की चोट खाकर वहीं मर गया । ब्राह्मण-पत्‍नी वहाँ से भागती हुई वृक्ष के नीचे पहुँची । वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका पुत्र बड़ी शान्ति से सो रहा है, और उससे कुछ दूरी पर एक काले साँप का शरीर खँड-खँड हुआ पड़ा है । तब उसे नेवले की वीरता का ज्ञान हुआ । पश्चात्ताप से उसकी छा़ती फटने लगी ।

इसी बीच ब्राह्मण राजशर्मा भी वहाँ आ गया । वहाँ आकर उसने अपनी पत्‍नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंकित हो गया । किन्तु पुत्र को कुशलपूर्वक सोते देख उसका मन शान्त हुआ । पत्‍नी ने अपने पति देवशर्मा को रोते-रोते नेवले की मृत्यु का समाचार सुनाया और कहा- "मैं तुम्हें यहीं ठहर कर बच्चे की देख-भाल के लिये कह गई थी । तुमने भिक्षा के लोभ से मेरा कहना नहीं माना । इसी से यह परिणाम हुआ।

सीख (MORAL OF THE STORY) : कोई भी काम बिना सोच विचारे नहीं करना चाहिए क्योकि बिना सोच के काम करने वालो को सदा हानि उठाना पड़ता हैं 


  





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