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small story for kids in hindi- बच्चो की मज़ेदार बाल कहानिया

 

Small story for kids in hindi

story for kids in hindi with moral/story for kids in hindi/new story for kids in hindi



story for kids in hindi with moral/story for kids in hindi/new story for kids in hindi


दोस्तों आज हम बच्चो  लिए लाये हैं  बहुत की मज़ेदार बाल कहानिया जो आपको हँसाने और गुदगुदाने के साथ ही जीवन के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण सीख भी हमे देंगी


# Small story for kids in hindi

 और खरगोश का घमंड टूट गया 


एक वक्त की बात है, किसी घने जंगल में एक खरगोश रहता था, जिसे अपने तेज दौड़ने पर बहुत घमंड था। उसे जंगल में जो दिखता, वो उसी को अपने साथ दौड़ लगाने की चुनौती दे देता। दूसरे जानवरों के बीच वो हमेशा खुद की तारीफ करता और कई बार दूसरे का मजाक भी उड़ाता।

एक बार उसे एक कछुआ दिखा, उसकी सुस्त चाल को देखते हुए खरगोश ने कछुए को भी दौड़ लगाने की चुनौती दे दी। कछुए ने खरगोश की चुनौती मान ली और दौड़ लगाने के लिए तैयार हो गया।

जंगल के सभी जानवर कछुए और खरगोश की दौड़ देखने के लिए जमा हो गए। दौड़ शुरू हो गई और खरगोश तेजी से दौड़ने लगा और कछुआ अपनी धीमी चाल से आगे बढ़ने लगा। थोड़ी दूर पहुंचने के बाद खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा, तो उसे कछुआ कहीं नहीं दिखा। खरगोश ने सोचा, कछुआ तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है और उसे यहां तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाएगा, क्यों न थोड़ी देर आराम ही कर लिया जाए। यह सोचते हुए वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा।

पेड़ के नीचे सुस्ताते-सुस्ताते कब उसकी आंख लग गई, उसे पता भी नहीं चला। उधर, कछुआ धीरे-धीरे और बिना रुके लक्ष्य तक पहुंच गया। उसकी जीत देखकर बाकी जानवरों ने तालियां बजानी शुरू कर दी। तालियों की आवाज सुनकर खरगोश की नींद खुल गई और वो दौड़कर जीत की रेखा तक पहुंचा, लेकिन कछुआ तो पहले ही जीत चुका था और खरगोश पछताता रह गया।


कहानी से सीख:

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि जो धैर्य और मेहनत से काम करता है, उसकी जीत पक्की होती है और जिन्हें खुद पर या अपने किए हुए कार्य पर घमंड होता है, उसका घमंड कभी न कभी टूटता जरूर है।


# Small story for kids in hindi

बंदर और मगरमछ की  कहानी 


एक नदी के किनारे एक विशाल जामुन का पेड़ था जिसमें एक बंदर रहता था। उसी नदी में एक मगरमच्छ अपनी पत्नी के साथ रहा करता था। बंदर मगरमच्छ के लिए पेड़ से तोड़कर जामुन नीचे फेंक दिया करता था जिससे मगरमच्छ और बंदर में घनी मित्रता हो गई।

कुछ दिनों के बाद, एक दिन मगरमच्छ ने बंदर द्वारा दिए गए मीठे जामुन अपनी पत्नी को भी खिलाएं। मीठे जामुन का स्वाद चखते ही मगरमच्छ की पत्नी ने मगरमच्छ से कहा कि इतने मीठे जामुन तुम कहां से लाए हो?

तभी मगरमच्छ ने उत्तर दिया,"यह जामुन उसे उसके मित्र बंदर प्रतिदिन देता है।"

फिर मगरमच्छ की पत्नी ने कहा कि यह जामुन इतने मीठे हैं, फिर जो बंदर इन्हें हर वक्त खाता है उसका कलेजा कितना मीठा होगा।

मगरमच्छ ने कहा,, तुम क्या कहना चाहती हो, मैं कुछ समझा नहीं?"

मगरमच्छ की पत्नी ने मगरमछ से  कहा कि उसे उसके मित्र बंदर का कलेजा चाहिए।इसके बाद मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बहुत समझाने की कोशिश की परंतु मगरमच्छ की पत्नी न मानी। उसे उस बंदर के कलेजे को खाने की जिद्ध थी, जिसके आगे मगरमच्छ की हर कोशिश बेकार थी।


आखिर में, मगरमच्छ अपनी पत्नी की बात को मानने के लिए तैयार हो गया और बंदर को फंसाने का उपाय सोचने लगा।अगले दिन वह जामुन के पेड़ के पास अपने मित्र बंदर से मिलने गया और कहने लगा मेरे प्रिय मित्र, तुम हमें प्रतिदिन इतने मीठे जामुन देते हो। कल मैंने यह जामुन अपनी पत्नी को खिलाए थे, जिसे खाकर मेरी पत्नी अत्यंत प्रसन्न हुई और वह तुमसे मिलना चाहती है।

बंदर को यह सुनकर अत्यंत खुशी हुई और उसने मगरमच्छ से कहा कि मैं पानी में जाऊंगा कैसे? मुझे तैरना नहीं आता।

इसके जवाब में मगरमच्छ ने कहा कि बस इतनी सी बात। तुम मेरी पीठ पर बैठकर हमारे घर आ सकते हो। 

मगरमच्छ की यह बात सुनकर बंदर भी खुश हो गया और मगरमच्छ की पत्नी से मिलने के लिए मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।

नदी में थोड़ा सफर तय करने के बाद मगरमच्छ के मन में विचार आया कि क्यों ना अब बंदर को सारी बात बता दी जाए। अब तो बंदर नदी में भाग भी नहीं सकता है।उसने अपने मित्र बंदर को सारी बात बता दी। सच्चाई जानते ही बंदर को बहुत अधिक दुख हुआ, उसने अपने मन में विचार किया कि जिसे वह अपना सबसे घनिष्ठ मित्र समझता है वही मित्र उसे मारने के लिए ले जा रहा है परंतु उसने मगरमच्छ के आगे बड़ी समझदारी से अपने दुख को नहीं जताने दिया।

वह मगरमच्छ से बड़ी खुशी के साथ बोला, अरे मित्र, बस इतनी सी बात थी, तुम मुझे यह बात पहले ही बता देते। मैं तो अपना कलेजा जामुन के पेड़ पर संभाल के रखता हूं। यदि मैं अपने साथ अपना कलेजा ऐसे ही लेकर घूमता रहा तो कोई भी इसे छीन सकता है। चलो, मुझे मेरे घर जामुन के पेड़ के पास ले चलो, मैं तुम्हें अपना कलेजा दे देता हूं।

बंदर की यह बात सुनकर मगरमच्छ प्रसन्न हुआ और मगरमच्छ बंदर के घर की ओर के लिए मुड़ गया।

मगरमच्छ के जामुन के पेड़ के पास पहुंचते ही बंदर ने मगरमच्छ की पीठ से तेजी से पेड़ की ओर छलांग मारी और पेड़ पर पहुंचते ही कहने लगा कि मूर्ख! कोई कलेजा संभाल कर रखता है क्या? कलेजे के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता।अरे मुर्ख और धोकेबाज आज से हम दोनों की मित्रता यहीं समाप्त हुई।


# Small story for kids in hindi

लोमड़ी और सारस की दावत की कहानी 

|Lomdi Aur Saras Ki Kahani


बहुत पुरानी बात है, एक जंगल में एक लोमड़ी और एक सारस रहते थे। ये दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। सारस रोजाना लोमड़ी को तालाब से मछली पकड़ कर खाने के लिए देता था। इस प्रकार दोनों की दोस्ती बहुत गहरी होती चली गई।

सारस बहुत सीधा साधा था, लेकिन लोमड़ी बहुत शैतान और चालाक थी। वह हमेशा दूसरों को परेशान किया करती थी। उसे दूसरों का अपमान करने और मजाक उड़ाने में बहुत मजा आता था।एक दिन उसने सोचा कि क्यों न एक बार सारस का भी अपमान किया जाए और उसका मजाक उड़ाया जाए। ऐसा सोचकर उसने सारस को दावत पर बुलाया।

उसने जान बूझकर सूप एक प्लेट में परोसा। उसे पता था कि सारस प्लेट में से सूप को नहीं पी सकता। उसे सूप न पीता देख लोमड़ी मन ही मन बहुत खुश हुई और झूठी चिंता दिखाते हुए सारस से पूछने लगी कि क्या बात है मित्र सूप पसंद नहीं आया क्या? सारस बोला नहीं मित्र, यह तो बहुत स्वादिष्ट है।

सारस ने जब देखा कि सूप को प्लेट में परोसा गया है और लोमड़ी जान बूझकर उससे सवाल कर रही है, तो वह सब समझ गया, लेकिन कुछ नहीं बोला। उस दिन सारस को अपमान सहने के साथ ही भूखा भी रहना पड़ा, लेकिन जाते-जाते सारस ने भी उसे अपने यहां दावत पर बुलाया और लोमड़ी दूसरे ही दिन सारस के घर दावत पर पहुंच गई।

सारस ने भी दावत में सूप बनाया था और लोमड़ी के साथ लंबी चोंच वाले अन्य पक्षियों को भी बुलाया था। सारस ने सूप को सुराही में परोसा। सुराही का मुंह इतना छोटा था कि उसमें बस चोंच ही अंदर जा सकती थी।

लोमड़ी पूरा टाइम सुराही और अन्य सभी पक्षियों को सूप पीते देखती रही। इसी बीच सारस ने पूछा कि क्या बात है मित्र सूप अच्छा नहीं लगा क्या, लोमड़ी को अचानक अपने शब्द याद आ गए। सभी बोले कि सूप बहुत स्वादिष्ट है। लोमड़ी काे भी सभी की हां में हां मिलाना पड़ा।

यह सब देख लोमड़ी अपने आप में बहुत अपमानित महसूस कर रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकी  क्योकि  उसने  उस सारस के  साथ ऐसा ही किआ था 

कहानी से सीख:

हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है।


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मुर्ख बिल्लियों और चालक बंदर की कहानी 


यह दो बिल्ली और बंदर की कहानी है. जब दो बिल्लियों के बीच फूट पड़ जाती है तब बंदर कैसे उसका फायदा उठाता है. इसे जानने के लिए पढ़िए बिल्ली और बंदर की कहानी.

किसी गाँव में दो बिल्लियाँ रहती थीं । वह आपस में बहुत प्यार के साथ रहती थीं। उन्हें जो कुछ मिलता था, वे उसे आपस में मिल-बाँटकर खाया करती थीं। एक दिन उन्हें एक ही रोटी मिली। उसे बराबर-बराबर बाँटते समय उन दोनों में झगड़ा हो गया । एक बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा दूसरी बिल्ली के रोटी के टुकड़े से थोड़ा छोटा लगा । लेकिन दूसरी बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा बड़ा नहीं लगा।

जब दोनों बिल्लियाँ आपस में किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाई तो दोनों बिल्लियाँ एक बंदर के पास गयीं. उन्होनें बंदर को सारी बात बताई और उससे न्याय करने के लिये कहा। पूरी बात सुनकर बंदर एक तराजु लेकर आया और दोनों टुकड़े एक-एक पलडें में रख दिये। तोलते समय जो पलड़ा भारी होता, उस वाली तरफ से उसने थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल लेता। अब दूसरी तरफ का पलड़ा भारी हो गया, तो बंदर ने उस तरफ से भी रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल ली। इस तरह बंदर कभी इस तरफ से तो कभी उस तरफ से रोटी ज्यादा होने का बहाना बनाकर रोटी तोड़कर अपने मुंह में डाल लेता।

दोनों बिल्लियाँ चुपचाप बंदर के फैसले का इंतज़ार करती रही। मगर जब बिल्लियों ने देखा कि रोटी के दोनों टुकड़े बहुत छोटे-छोटे रह गये तो वह बंदर से बोली कि – “आप चिन्ता ना करें, हम अपने आप बँटवारा कर लेंगी।” इस पर बंदर बोला जैसा आप ठीक समझो, लेकिन मुझे भी अपनी मेहनत की मजदूरी मिलनी चाहिए।” इतना कहकर बंदर ने बाकी बचे हुए रोटी के दोनों टुकड़े भी अपने मुँह में भर लिए और बिल्लियाँ को वहाँ से भगा दिया।

दोनों बिल्लियों को अपनी गलती का बहुत दुख हुआ और उन्हें समझ आ गया कि “आपस की फूट बहुत बुरी होती है और दूसरे इसका फायदा उठा सकते हैं।” उम्मीद है कि आप लोगों को बिल्ली और बंदर की कहानी पसंद आई होगी. कृप्या इस कहानी को अपने प्रियजनों के साथ भी शेयर करें.


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चालाक टोपी वाला 


एक समय की बात है। एक गांव में एक व्यापारी रहता था। वह अपना पेट भरने के लिए गांव-गांव जाकर टोपियां बेचा करता था। वह रोज सुबह एक बड़ी-सी टोकरी में टोपियां लेकर निकलता था। उन्हें बेचकर वह शाम तक अपने घर वापस आ जाता था। एक सुबह वह अपनी टोकरी में रंग-बिरंगी टोपियां लेकर निकला। एक गांव में टोपियां बेचने के बाद वह दूसरे गांव की ओर जा रहा था।

चलते-चलते वह बहुत थक गया था। उस रास्ते से गुजरते समय एक जंगल भी पड़ता था। जंगल में उसे एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया। उसने सोचा क्यों न पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर लिया जाए! व्यापारी बहुत थका हुआ था। उसने टोपियों से भरी टोकरी को नीचे रख दिया। फिर सिर से टोपी को उतारकर नीचे रखा और गले से गमछे को उतारकर जमीन पर बिछा दिया और उस पर लेट गया। उसके बाद व्यापारी गहरी नींद में सो गया।


जिस पेड़ के नीचे व्यापारी सो रहा था, उसी पेड़ पर बहुत सारे बंदर रहते थे। व्यापारी के सोते ही बंदरों ने उसकी टोकरी पर हमला बोल दिया। बंदरों ने रंग-बिरंगी टोपियों को लेकर खेलना शुरू कर दिया। कई बंदरों ने टोपियों को हाथ में भी पकड़ रखा था। बंदरों की उछल-कूद से वहां शोर हुआ, तो व्यापारी की नींद खुल गई। नींद खुलते ही व्यापारी के होश उड़ गए। उसकी टोकरी से सारी टोपियां गायब हो चुकी थीं। सभी बंदर हाथ में टोपी लिए हुए व्यापारी की ओर देख रहे थे। व्यापारी ने ऊपर बंदरों की ओर देखा तो उसे सब समझ आ गया। व्यापारी परेशान हो गया। वह सोच में पड़ गया कि अब टोपियां न बेच पाने के कारण उसका कितना नुकसान हो जाएगा।


यही सब सोचते हुए वह अपना सिर खुजाने लगा। उसे ऐसा करता देख बंदर भी अपना सिर खुजलाने लगे। व्यापारी को यह देख गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में अपने सिर पर अपना हाथ तेजी से मारा। बंदरों ने भी अपने हाथ से अपने सिर पर तेजी से मारा। बंदरों को ऐसा करता देखा व्यापारी को समझ आ गया कि बंदर उसकी नकल उतार रहे हैं। अब व्यापारी को एक तरकीब सूझी, जिससे वह अपनी टोपियां वापिस ले सकता था।



अब उसने जिस टोपी को सोते वक्त, सिर के नीचे रखा था, उसको सिर पर पहन लिया। बंदरों ने भी झट से हाथों में पकड़ी हुई टोपियां सिर पर पहन ली। अब व्यापारी ने सिर पर पहनी टोपी को जमीन पर फेंक दिया। बंदरों ने भी व्यापारी की नकल उतारते हुए, अपने सिर पर पहनी हुई टोपियां जमीन पर फेंक दी। व्यापारी की तरकीब काम कर गई थी। उसने जल्दी-जल्दी सारी टोपियां इकट्ठी की। टोकरी में सभी टोपियां को रखने के बाद व्यापारी वहां से तुरंत उन्हें बेचने के लिए दूसरे गांव की ओर चल दिया।


कहानी से सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें घबराना नहीं चाहिए। हर हाल में हमें समझदारी से काम लेना चाहिए।


# Small story for kids in hindi

एकता में बल होता हैं 


किसी गाँव में एक बूढा किसान रहता था। जिसके चार पुत्र थे। किसान बड़ा ही मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था वह रोज अपने खेतों में काम करता किंतु उसके चारों पुत्र किसान की खेतों में सहायता करने की बजाय पूरा दिन निठल्लों की तरह पड़े रहते और आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। बूढा किसान उन्हें बार-बार समझता और आपस मे न झगड़ने की नसीहत भी देता लेकिन किसान की किसी भी बात का उन चारों पर कोई असर नहीं होता।


 किसान को बस हमेशा यही चिंता लगी रहती कि यदि ये चारों भाई आपस में ऐसे ही लड़ते रहे तो मेरे मरने के बाद लोग इनकी इस बेवकूफी का फायेदा उठा सकते है। युही दिन गुजरते गए और फिर एक दिन किसान की तबियत बहुत बिगड़ने लगी जब मृत्यु का समय निकट आ गया तब उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया तथा सभी से एक-एक लकड़ी लाने को कहा। 


जब चारों एक-एक लकड़ी ले आये तो उस बूढ़े किसान ने अपने बड़े पुत्र से उन चारों लकड़ियों को एक रस्सी से मजबूती के साथ बांधने को कहा। बड़े बेटे ने वैसा ही किया। अब किसान ने रस्सी से बंधे लकड़ी के गट्ठे (bundle) को अपने प्रत्येक पुत्र को बारी-बारी से तोड़ने को कहा – लेकिन उन चारों में से कोई भी उस लकड़ी के गट्ठे को तोड़ न सका। 


इसके बाद किसान ने उस गट्ठे को खोलकर उसकी एक एक लकड़ी अपने चारों पुत्रों को देकर कहा – अब इन्हें तोड़कर दिखाओं। सभी ने लकड़ी तोड़ दी। तब किसान ने समझाया – देखो जब मैंने तुम्हें लकड़ी का गट्ठा दिया तो तुम में से कोई भी उसे तोड़ नहीं पाया लेकिन जब मैंने उस गट्ठे को खोलकर तुम्हे एक-एक लकड़ी तोड़ने को दी तो तुम सभी ने आराम से मेरे द्वारा दी गयी लकड़ी तोड़ दी। एकता ने बड़ा बल है जब चार लकड़ियों को एक साथ मिला देने पर तुम में से कोई भी उन्हें नहीं तोड़ पाया ठीक इसी प्रकार यदि तुम चारों आपस में मिलकर एक साथ रहोगे तो तुम्हे आसानी से कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। लेकिन यदि तुम आपस मे लड़ते-झगड़ते हुए अकेले रहोगे तो तुम्हे कोई भी नुकसान पहुँचा सकता है ठीक उस लकड़ी की तरह जिसे तुम सबने आसानी से तोड़ दिया था। 


इसलिए मेरे पुत्रों तुम सबको मिल जुलकर साथ रहना चाहिए किसान की बात चारों की समझ में आ गयी। उन चारों ने अपने पिता जी को वचन दिया कि हम चारों हमेशा एक साथ मिलजुलकर रहेंगे। और कभी लड़ाई झगड़ा नहीं करेंगे।


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ईमानदार लकड़हारा 


बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक लकड़हारा रहता था. वह अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार था और हमेशा कड़ी मेहनत करता था. प्रत्येक दिन वह पास के जंगल में पेड़ काटने चले जाता. जंगल से पेड़ काटने के बाद वह लकड़िया अपने गाँव लाता और सौदागर को बेच देता जिससे वह काफी अच्छा पैसा कमाता था. वह अपनी रोजमर्रा के खर्च से अधिक पैसा कमाता था जिससे उसके पास अच्छी बचत भी हो जाती लेकिन वह लकड़हारा अपने साधारण जीवन से खुश था.


एक दिन, वह नदी किनारे पेड़ काट रहा था. अचानक, उसके हाथ से कुल्हाड़ी फिसली और वह गहरे नदी में जा गिरी. वह नदी बहुत गहरी थी इसलिए वह खुद उस कुल्हाड़ी को नहीं निकाल सकता था. उसके पास सिर्फ एक ही कुल्हाड़ी थी जो अब नदी में खो चुकी थी. वह यह सोचकर बहुत परेशान हो गया.. वह सोचने लगा की बिना कुल्हाड़ी के वह अपनी आजीविका किस तरह से चला पायेगा.


वह बहुत ही दुखी हो गया, इसलिए वह भगवान से प्रार्थना करने लगा. वह सच्चे मन से प्रार्थना कर रहा था इसलिए भगवान ने उसकी बात सुनी और उसके पास आकर पूछा, ” पुत्र ! क्या समस्या हो गयी ? लकड़हारे ने अपनी सारी बात भगवान को बताई और अपनी कुल्हाड़ी लौटाने के लिए भगवान से विनती की.

भगवान ने अपना हाथ उठाकर गहरे नदी में डाला और चांदी की कुल्हाड़ी निकालकर लकड़हारे से पूछा, ” क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारे ने उस कुल्हाड़ी को देखा और बोला, ” नहीं. भगवान ने अपना हाथ दोबारा पानी में डाला और एक कुल्हाड़ी निकाली जो सोने की बनी हुई थी.

भगवान ने उससे पूछा, ” क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारे ने उस कुल्हाड़ी को अच्छी तरह देखा और बोला, ” नहीं भगवान ! यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है.

भगवान बोले, ” इसे ध्यान से देखो मेरे पुत्र, यह सोने की कुल्हाड़ी है जो बहुत कीमती है. सच में यह तुम्हारी नहीं है ?

लकड़हारा बोला, ” नहीं ! यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है. मैं सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ नहीं काट सकता, यह मेरे किसी काम की नहीं है.

भगवान यह देखकर खुश हुए और अपना हाथ फिर से गहरी नदी में डाला और एक कुल्हाड़ी निकाली. यह कुल्हाड़ी लोहे की थी और भगवान ने लकडहारे से पूछा, ” यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारा कुल्हाड़ी देखकर बोला, ” जी हाँ, यह मेरी कुल्हाड़ी है. आपका धन्यवाद. भगवान लकड़हारे की ईमानदारी देखकर बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे लोहे की कुल्हाड़ी दे दी, साथ में उसे दो कुल्हाड़ी उसकी ईमानदारी के लिए ईनाम में भी दी.


कहानी से सीख : यह कहानी हमें ईमानदारी की एक बहुत बड़ी सीख देती है. हमेशा ईमानदार रहो. ईमानदारी हमेशा से ही प्रशंसा की पात्र रही है. ईमानदारी हमारे नैतिक गुणों में चार चाँद लगाती है और फलस्वरूप हमें इसका बेहतर फल हमेशा मिलता है. इसलिए अपने काम के प्रति, खुद के प्रति और हर स्थिति में ईमानदार रहे.. आपको आपकी ईमानदारी का फल अवश्य मिलेगा.


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मुर्ख बंदर और  राजा 


एक बार एक राजा था। उसके पास एक बंदर था जो उसका सबसे अच्छा मित्र था।राजा का मित्र होने पर भी वह बंदर बहुत ही मुर्ख था। राजा का प्रिय होने के कारन उसे महल के हर जगह जाने की अनुमति थी बिना कोई रोक टोक। उसे शाही तरीके से महल में इज्ज़त दी जाती थी और यहाँ तक की वह राजा के कमरे में भी आराम से आ जा सकता था जहाँ राजा के गोपनीय सेवकों को भी जाना मना था।

एक दिन दोपहर का समय था। राजा अपने कमरे में आराम कर रहे था और बंदर भी उसी समय पास के गद्दे में बैठ कर आराम कर रहा था। उसी समय बंदर ने देखा की एक मक्खी आकर राजा के नाक में बैठा। बंदर में एक तौलिया से उस मक्खी को भगा दिया। कुछ समय बाद वह मक्खी दोबारा से आ कर राजा के नाक पर आ कर बैठ गयी। बंदर नै दोबारा उसे अपने हांथों से भगा दिया।


थोड़ी देर बाद बंदर नें फिर से देखा वही मक्खी फिर से आकर राजा के नाक पर बैठ गयी है। अब की बार बंदर क्रोधित हो गया और उसने मन बना लिया की इस मक्खी को मार डालना ही इस परेशानी का हल है।


उसने उसी समय राजा के सर के पास रखे हुए तलवार को पकड़ा और सीधे उस मक्खी की और मारा। मक्खी तो नहीं मरा परन्तु राजा की नाक कट गयी और राजा बहुत घायल हो गया।


कहानी से सीख : मुर्ख दोस्तों से सावधान रहें। वे आपके दुश्मन से भी ज्यादा आपका नुक्सान कर सकते हैं।


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आपका  स्व्भाव ही  आपका  पहचान हैं 


किसी वन में एक गीदड़ रहता था। एक दिन भूख के कारण वह जंगल में घूम रहा था लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। घूमते घूमते वह शहर पहुँच गया।

जैसे ही वह शहर पहुँचा तो अचानक से बहुत से कुत्तों ने भौंकना शुरु दिया। डर के मारे गीदड़ भागने लगा। भागते-भागते वह एक घर में घुस गया। अंदर अँधेरा था।

अरे ! यह क्या हुआ ? छप्प से किसी के गिरने की आवाज आई। दरवाजे के पास एक टब पड़ा था जिसमें पानी भरा था। गीदड़ उसमें जा गिरा। ओह ! मगर यह नीले रंग का पानी था और वह घर एक धोबी का था जिसने कपड़ों को रंगने के लिए रखा था। गीदड़ को ढूंढ़ रहे कुत्ते उसे ना देखकर वापिस चले गए।


कुत्तों के वापिस जाते ही गीदड़ टब से बाहर निकला तो उसने क्या देखा कि उसका शरीर तो नीले रंग का हो गया है। अब गीदड़ वन की ओर चल पड़ा।


वन में नीले गीदड़ को देख कर सब जानवर डर कर इधर-उधर भागने लगे। उन्हें डरते हुए देख गीदड़ को एक तरकीब सूझी। उसने सब जानवरों को कहा ” अरे ! तुम सब डरो नहीं। मैं तुम्हारा राजा हूँ। मुझे भगवान ने तुम सब की रक्षा के लिए भेजा है। ” इस तरह सब जानवर उसे भगवान का भेजा हुआ राजा समझकर उसकी सेवा करने और खाने-पीने का ध्यान रखने लगे।


कुछ समय बाद एक दिन वहाँ गीदड़ों के एक झुँड आ पहुँचा और अपनी भाषा में बातचीत करने लगा। बहुत दिनों बाद किसी को अपनी भाषा में बोलते सुन गीदर राजा अपने को रोक नहीं पाया और उसके मुँह से निकल पड़ा । “अरे ! यह तो मेरे ही परिवार के लोग हैं। ” यह जान कर खुशी के मारे वह भी उसी आवाज में बोलने लगा।


उसकी आवाज सुनकर सब जानवर हैरान हो गए कि यह तो गीदड़ है। उन्हें पता लग गया कि गीदड़ ने उन्हें कैसे मूर्ख बनाया। बस फिर क्या था, सब ने मिलकर उसे मार दिया और उसे उसके धोखे की सजा दी।


कहानी से सीख :  स्वभाव से ही सब की पहचान होती है।



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